बिहार चुनाव में चिराग पासवान की LJP (रामविलास) ने NDA से 40 सीटें मांगी हैं, जबकि भाजपा 25 देने को तैयार है। चिराग नीतीश सरकार पर भी सवाल उठा रहे हैं, जिससे NDA में तनाव है।
पटनाः बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीख़ जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है। इस बार मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले एनडीए और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच माना जा रहा है, लेकिन एनडीए खेमे के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर नया संकट खड़ा हो गया है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, लोकसभा में पार्टी की हालिया शानदार जीत के बाद, अब विधानसभा चुनाव में भी बड़ी हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं।
सीट को लेकर खींचतान
सूत्रों के मुताबिक, चिराग पासवान ने अपनी पार्टी के लिए 40 विधानसभा सीटों की मांग रखी है, जबकि भाजपा की तरफ से अब तक अधिकतम 25 सीटें देने की पेशकश हुई है। जदयू समेत एनडीए के अन्य सहयोगी दल भी ज्यादा सीट देने के पक्ष में नहीं हैं। लोजपा (रामविलास) के आक्रामक रुख ने भाजपा-जदयू की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। चिराग पासवान का दावा है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने बिहार की सभी पांच सीटें जीतकर अपनी ताकत साबित कर दी है, इसलिए विधानसभा में भी उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
चिराग उठा रहे सवाल
चिराग पासवान सिर्फ सीटों तक ही सीमित नहीं हैं। वे राज्य की कानून-व्यवस्था और नीतीश कुमार सरकार के प्रदर्शन पर भी लगातार सवाल उठा रहे हैं, जिससे एनडीए में अंदरूनी तनाव और गहरा गया है। जानकार मानते हैं कि चिराग खुद को बिहार की राजनीति का मजबूत विकल्प, यहां तक कि मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदार के तौर पर पेश करना चाहते हैं।
भाजपा के लिए दोधारी तलवार
भाजपा के लिए यह स्थिति किसी दोधारी तलवार से कम नहीं। यदि वे चिराग को ज्यादा सीटें देती है तो जदयू जैसे सहयोगियों की नाराज़गी सामने आ सकती है, जिससे गठबंधन में हलचल की आशंका बनेगी। वहीं अगर लोजपा को कम सीट दी गई तो चिराग के अलग होकर चुनाव लड़ने की आशंका बढ़ जाएगी, 2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा के अकेले लड़ने से भाजपा-जदयू को कई सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था।
क्या रुख अपनाएगी NDA?
अब अहम सवाल यह है कि बीजेपी और जदयू चिराग पासवान की बड़ी डिमांड पर क्या रुख अपनाएंगी? क्या एनडीए एकजुट रह पाएगा या भीतरघात का खतरा फिर सामने आएगा? बिहार चुनाव के अगले कुछ दिन ना सिर्फ सियासी समीकरणों, बल्कि बेमिसाल रणनीतिक कौशल और धैर्य की भी असली परीक्षा होंगे।
