लालू परिवार से लेकर मांझी, मंडल, मिश्रा और राय घराने तक आधा दर्जन पूर्व CM के परिजन चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है। सबसे बड़ा सस्पेंस है कि क्या नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत को राजनीति में उतारेंगे?

Bihar Election 2025 Latest Update: बिहार की राजनीति में एक बार फिर वंशवाद की गूंज तेज हो गई है। आगामी विधानसभा चुनाव 2025 में आधा दर्जन से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवार चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं। लालू प्रसाद-राबड़ी देवी से लेकर जीतन राम मांझी और जगन्नाथ मिश्रा तक, कई घराने अपनी पारिवारिक राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए चुनावी अखाड़े में कदम रखेंगे। लेकिन सबसे बड़ी चर्चा और बहस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को लेकर है, जो अब तक पारिवारिक राजनीति से दूरी बनाए हुए थे।

लालू-राबड़ी परिवार, यादव घराने में सीटों की खींचतान

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के परिवार का दबदबा जारी रहेगा। तेजस्वी यादव राघोपुर से चुनाव लड़ते हुए महागठबंधन का नेतृत्व करेंगे। सूत्रों के अनुसार, तेजस्वी दो सीटों से भी चुनाव लड़ सकते हैं ताकि उनकी जीत सुनिश्चित हो सके। हालांकि, यादव परिवार के भीतर भी सीटों को लेकर खींचतान दिख सकती है। वहीं दूसरी ओर तेज प्रताप यादव ने साफ संकेत दिया है कि अगर तेजस्वी यादव महुआ से चुनाव लड़ेंगे तो वो राघोपुर से चुनाव लड़ेंगे।

बीपी मंडल का परिवार, निखिल मंडल की वापसी

पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के बेटे निखिल मंडल एक बार फिर मधेपुरा से जदयू के टिकट पर चुनावी किस्मत आजमा सकते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में वे हार गए थे, लेकिन इस बार पार्टी ने अधिक रणनीतिक तरीके से उनके लिए मैदान तैयार किया है। निखिल मंडल का मधेपुरा में पारिवारिक प्रभाव अभी भी कायम है और जदयू नेतृत्व उम्मीद कर रहा है कि इस बार वे पिता के नाम का सदुपयोग करते हुए जीत हासिल कर सकेंगे।

जगन्नाथ मिश्रा का परिवार, नीतीश मिश्रा का दबदबा

पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा पहले से ही बिहार के उद्योग मंत्री हैं और इस बार झंझारपुर से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। नीतीश मिश्रा ने मिथिलांचल में अपनी अलग पहचान बना ली है और उन्हें मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है।

कर्पूरी ठाकुर का परिवार

जन नायक कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे रामनाथ ठाकुर पहले से ही राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं। अब तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में कदम रखने को तैयार है। डॉ. जागृति (रामनाथ ठाकुर की बेटी) प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से समस्तीपुर की किसी सीट से चुनाव लड़ सकती हैं।

चंद्रिका राय की संभावित वापसी

पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय के बेटे चंद्रिका राय एक बार फिर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। उनकी बेटी ऐश्वर्या को लेकर भी चर्चाएं होती रहती हैं, लेकिन अभी उनकी भूमिका स्पष्ट नहीं है। चंद्रिका राय का जदयू से नाता रहा है और वे मुजफ्फरपुर या पूर्वी चंपारण के किसी क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं।

जीतन राम मांझी का परिवार

हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के परिवार में इस बार बहू दीपा मांझी और उनकी समधन भी चुनावी मैदान में होंगी। दीपा मांझी इमामगंज से तो बारचट्टी से उनकी समधन चुनाव लड़ेंगी।

सतीश प्रसाद सिंह का परिवार

केवल पांच दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री रहे सतीश प्रसाद सिंह के बेटे सुनील कुमार सिंह जदयू से जुड़े हुए हैं। यदि टिकट मिला तो वे भागलपुर या खगड़िया से चुनाव लड़ सकते हैं। हालांकि सतीश प्रसाद सिंह केवल पांच दिन CM रहे थे, लेकिन उनका राजनीतिक प्रभाव लंबे समय तक कायम रहा और अब उनका परिवार उस विरासत को आगे बढ़ाने की तैयारी में है।

नीतीश कुमार का परिवार, सबसे बड़ा सस्पेंस

सबसे बड़ी बहस और चर्चा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को लेकर है। नीतीश कुमार हमेशा से पारिवारिक राजनीति के विरोधी रहे हैं और उन्होंने कभी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन अब निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री की चर्चा है। लेकिन अभी तक पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ। पटना या नालंदा से चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई जा रही है। जदयू कार्यकर्ताओं की मांग है कि निशांत को मैदान में उतारा जाए।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में वंशवाद की महावापसी एक निर्विवाद तथ्य है। छह पूर्व मुख्यमंत्रियों के घराने चुनावी मैदान में उतर रहे हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि पारिवारिक राजनीति बिहार में कितनी गहरी जड़ें जमाए हुए है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार अपने वंशवाद विरोधी स्टैंड पर कायम रहेंगे या राजनीतिक दबाव के आगे झुकते हुए निशांत कुमार को मैदान में उतारेंगे। यदि निशांत कुमार चुनाव लड़ते हैं, तो यह न केवल नीतीश की राजनीतिक छवि को प्रभावित करेगा, बल्कि बिहार की राजनीति में वंशवाद को और मजबूती भी देगा।