लालू परिवार में रोहिणी-तेजस्वी विवाद ने RJD की आंतरिक कलह उजागर कर दी है। इससे तेजस्वी की नेतृत्व छवि को धक्का लगा है और 14% यादव वोटबैंक के बिखरने का खतरा है। यह पार्टी में बगावत और नेतृत्व को चुनौती दे सकता है।
लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बीच हालिया विवाद ने बिहार की राजनीति में नया भूचाल खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया पर खुले विवाद ने न सिर्फ लालू परिवार की आंतरिक कलह को उजागर किया है, बल्कि इससे तेजस्वी की राजनीतिक छवि पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला आने वाले समय में तेजस्वी और आरजेडी, दोनों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। यह विवाद तीन प्रमुख स्तरों पर नुकसान पहुंचा सकता है...
व्यक्तिगत छवि और नेतृत्व क्षमता को बड़ा धक्का
विशेषज्ञों का मानना है कि विवाद को सार्वजनिक होने देना तेजस्वी की मैच्योरिटी पर सवाल खड़ा करता है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, “अगर तेजस्वी एक परिपक्व नेता की तरह इसे परिवार के भीतर ही सुलझा लेते तो स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती। इस विवाद ने उनकी नेतृत्व क्षमता और भावनात्मक प्रबंधन पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।”
रोहिणी आचार्य ने अपने पिता को किडनी दान कर लोगों के बीच बलिदान और संवेदनशीलता की मिसाल कायम की थी। ऐसे में उन्हीं का पार्टी और परिवार से आक्रोशित होकर अलग होना, जनता में तेजस्वी की संवेदनशील नेतृत्व वाली छवि को कमजोर करता है।
यादव वोट बैंक के बिखरने का खतरा
बिहार में यादव समुदाय लगभग 14% के आसपास है और आरजेडी की चुनावी रीढ़ इसी समुदाय पर टिकी है। लालू के बाद तेजस्वी इस समाज के सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभर रहे थे, लेकिन परिवारिक टूट-फूट और नेतृत्व विवाद नए समीकरण बना सकती है। तेज प्रताप पहले ही सार्वजनिक रूप से वारिस होने का दावा कर चुके हैं और अब यदि वह और अधिक राजनीतिक रूप से सक्रिय व असंतुष्ट होते हैं, तो यह यादवों के भीतर फैक्शनलाइजेशन को बढ़ा सकता है।
विश्लेषकों का तर्क है कि भाजपा पहले से यादव सशक्त नेताओं जैसे नंदकिशोर यादव, नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव, नवल किशोर के माध्यम से यादव वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही थी। अब तेज प्रताप यदि विपक्ष-विरोधी भूमिका या अलग लाइन पकड़ते हैं, तो यह प्रयास और मजबूत हो सकता है।
पार्टी के भीतर बगावत और नेतृत्व चुनौती
चुनाव हार और अब आंतरिक विवादों ने RJD कैडर और वरिष्ठ नेताओं में असंतोष बढ़ा दिया है। वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी, फातिमा रहमान, शिवानंद तिवारी सहित कई पुराने नेताओं ने हाल के महीनों में अप्रत्यक्ष नाराजगी जताई है। यह असंतोष संजय यादव की बढ़ती भूमिका और किचन-कैबिनेट मॉडल को लेकर और भी तेज हो गया है। यदि तेज प्रताप “असली वारिस” की लाइन को आगे बढ़ाते हैं और खुद को सक्रिय विकल्प के रूप में पेश करते हैं, तो पार्टी के नाराज और असंतुष्ट नेताओं का झुकाव उनकी ओर हो सकता है।
रोहिणी विवाद केवल भावनात्मक पारिवारिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक ब्रांड, कैडर भरोसा, वोटबैंक स्थिरता और नेतृत्व क्षमता चारों को प्रभावित करता है। यदि यह विवाद लंबा खिंचता है और तेजस्वी नियंत्रण नहीं कर पाए, तो आने वाले वर्षों में RJD की राजनीतिक मजबूती से लेकर भविष्य की विरासत लड़ाई तक प्रभावित हो सकती है। संक्षेप में कहे तो नुकसान सिर्फ इमेज का नहीं, बल्कि संगठन, वोट और भविष्य, तीनों का संभावित खेल है।
