1977 में, सिर्फ़ 29 साल की उम्र में, लालू प्रसाद यादव ने छपरा सीट से 85.97% वोट पाकर इतिहास रच दिया था। भारतीय राजनीति में यह एक ऐसा रिकॉर्ड है जो आज तक नहीं टूटा। जानिए कैसे जेपी आंदोलन से निकला यह युवा नेता बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बना।

आज जब 77 साल के लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणनीति बना रहे हैं, तो याद आता है वह ऐतिहासिक दिन जब महज 29 साल के एक युवा नेता ने भारतीय राजनीति में एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया था जो आज तक अटूट है। 1977 के लोकसभा चुनाव में छपरा सीट (वर्तमान सारण) से 85.97% वोट हासिल करने वाले उस युवा का नाम था लालू प्रसाद यादव।

जेपी आंदोलन का सितारा

11 जून 1948 को गोपालगंज के एक साधारण परिवार में जन्मे लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय के छात्र आंदोलन से हुई थी। 1974 में जब जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के शासन के खिलाफ 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया, तब पटना विश्वविद्यालय में छात्र संघ के नेता लालू यादव उस आंदोलन के सबसे मुखर चेहरों में से एक बन गए।

जेपी मूवमेंट के दौरान लालू का जुनून और वक्तृत्व कला देखकर जयप्रकाश नारायण स्वयं भी प्रभावित हुए थे। छात्र आंदोलन में अपनी गिरफ्तारी के दौरान भी लालू का उत्साह कम नहीं हुआ। इमरजेंसी के काले दिनों में जब लोकतंत्र दम तोड़ रहा था, तब लालू जैसे युवा नेता ही आशा की किरण बनकर उभरे।

पहला चुनाव, पहला कमाल

1977 में जब इमरजेंसी हटने के बाद लोकसभा चुनाव हुए, तो मात्र 29 साल के लालू यादव ने छपरा सीट से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। भारतीय लोकदल के टिकट पर उतरे इस युवा नेता के सामने कांग्रेस के अनुभवी नेता राम शेखर प्रसाद सिंह खड़े थे। लेकिन जो नतीजे आए, वे भारतीय चुनावी इतिहास के सबसे चमत्कारिक परिणामों में से एक बने। छपरा सीट पर कुल 6,58,829 पंजीकृत मतदाता थे और 73.89% वोटिंग हुई। इन 4,83,198 वोटों में से लालू यादव को मिले 4,15,409 वोट - यानी कुल वोटों का 85.97%।

रिकॉर्ड की बारिश

  • यह जीत सिर्फ जीत नहीं थी, बल्कि कई रिकॉर्डों का खजाना थी
  • सबसे युवा सांसद: 29 साल की उम्र में संसद पहुंचने वाले सबसे युवा सदस्यों में शामिल
  • अजेय वोट प्रतिशत: 85.97% वोट - एक ऐसा आंकड़ा जो आज तक टूटा नहीं है
  • जीत का अंतर: निकटतम प्रतिद्वंदी से 77% से अधिक का अंतर

प्रतिद्वंदियों की हालत

सबसे दिलचस्प बात यह थी कि बाकी सभी उम्मीदवारों ने मिलकर केवल 14% वोट ही हासिल किए थे। जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार को मात्र 8.61% और सीपीआई को 4.39% वोट मिले थे। यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में किसी एक उम्मीदवार का सबसे प्रभावशाली प्रदर्शन था।

बिहार में कांग्रेस का सफाया

1977 के इस चुनाव में न केवल लालू ने व्यक्तिगत कमाल दिखाया, बल्कि पूरे बिहार में जनता पार्टी गठबंधन ने इतिहास रच दिया। राज्य की सभी 54 लोकसभा सीटों पर जनता पार्टी और सहयोगी दलों की जीत हुई। कांग्रेस के खाते में एक भी सीट नहीं आई। यह इमरजेंसी के विरोध में जनता के गुस्से का प्रतिबिंब था। राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस को केवल 189 सीटें मिलीं जबकि जनता पार्टी गठबंधन ने 345 सीटें हासिल कीं। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और लालू जैसे युवा सांसदों ने दिल्ली की राजनीति में नया जोश भरा।

MY समीकरण के जनक

संसद में पहुंचने के बाद लालू ने अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनानी शुरू की। 1980 में जब जनता पार्टी में विभाजन हुआ, तो लालू ने वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल का साथ दिया। यहीं से उन्होंने अपने प्रसिद्ध 'MY समीकरण' (मुस्लिम-यादव गठबंधन) की नींव रखी। इस रणनीति का जादू 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में दिखा, जब जनता दल को प्रचंड बहुमत मिला और लालू बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1990 से 1997 तक उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभाला और बिहार की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया।

चारा घोटाले का दौर

1997 में चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू ने जनता दल छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का गठन किया। अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवाकर उन्होंने एक नई राजनीतिक परंपरा शुरू की। 2004 से 2009 तक वे केंद्र की UPA सरकार में रेल मंत्री भी रहे और रेलवे को मुनाफे में लाने का कमाल दिखाया। 2009 में लालू ने आखिरी बार लोकसभा चुनाव लड़ा था। दो सीटों से उतरे लालू सारण से तो जीत गए लेकिन पाटलिपुत्र से हार गए। 2013 में चारा घोटाले की सजा के बाद उन पर चुनाव लड़ने की पाबंदी लग गई।

पार्टी अध्यक्ष से किंग मेकर तक

आज 2025 में लालू प्रसाद यादव RJD के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में एक अलग भूमिका में हैं। वे पार्टी की रणनीति के मास्टरमाइंड हैं। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का रास्ता तैयार किया है। 47 साल पहले 85% वोट पाने वाले उस युवा नेता में आज भी वही जुनून है। अब वे मैदान में नहीं उतरते, लेकिन महागठबंधन की रणनीति का हर कदम उनकी छाप लिए होता है।