बिहार के मुजफ्फरपुर में 2025 चुनाव से पहले NDA में टिकट पर घमासान। गायघाट सीट को लेकर JDU नेता प्रभात किरण और LJP(RV) की कोमल सिंह के समर्थकों में मारपीट हुई। कार्यकर्ता सम्मेलन में जमकर हंगामा और कुर्सियां चलीं।

मुजफ्फरपुरः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले टिकट बंटवारे को लेकर एनडीए के भीतर ही घमासान शुरू हो गया है। मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार को आयोजित एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन जंग का मैदान बन गया। जेडीयू नेता व पूर्व मंत्री महेश्वर यादव के बेटे प्रभात किरण और लोजपा (रामविलास) सांसद वीणा देवी की बेटी कोमल सिंह के समर्थकों के बीच जमकर हंगामा, नारेबाजी और मारपीट हुई।

सम्मेलन में हंगामा और अफरातफरी

गायघाट के जारंग हाईस्कूल में आयोजित सम्मेलन में जैसे ही कोमल सिंह मंच के पास पहुंचीं, स्थानीय नेताओं ने "बाहरी भगाओ, गायघाट बचाओ" के नारे लगाने शुरू कर दिए। इस पर प्रभात किरण के समर्थकों और कोमल सिंह के समर्थकों में भिड़ंत हो गई। देखते ही देखते दोनों पक्षों के कार्यकर्ताओं ने कुर्सियां फेंकनी शुरू कर दीं और मंच की ओर झंडे तक उछाल दिए। हंगामे के दौरान अफवाह फैली कि मौके पर गोली चली है, जिसके बाद भगदड़ मच गई और लोग इधर-उधर भागने लगे। पुलिस और सुरक्षा बलों को हालात संभालने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

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मंच पर भी भिड़े नेता

मंच पर भी स्थिति कम तनावपूर्ण नहीं रही। प्रभात किरण और कोमल सिंह के बीच तीखी नोकझोंक हुई। इस दौरान टेबल पलट दिए गए और कई कुर्सियां तोड़ दी गईं। अफरातफरी के बीच मंच संचालन तक रुक गया।

माहौल शांत करने में जुटी पुलिस

मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने किसी तरह हालात को काबू में किया। प्रशासन की ओर से दावा किया गया कि गोली चलने की बात सिर्फ अफवाह थी और किसी के घायल होने की सूचना नहीं है। हालांकि, भगदड़ के कारण कई लोग सहम गए।

टिकट बंटवारे पर मची खींचतान

गायघाट सीट पर जेडीयू और लोजपा-आरवी दोनों ही दावा ठोक रहे हैं। प्रभात किरण को जेडीयू का स्थानीय चेहरा माना जा रहा है, जबकि कोमल सिंह अपनी मां वीणा देवी और पिता एमएलसी दिनेश सिंह के राजनीतिक प्रभाव के सहारे इस सीट से ताल ठोंक रही हैं। ऐसे में टिकट किसे मिलेगा, इसे लेकर ही दोनों गुटों में जबरदस्त तनातनी देखने को मिली।

चुनावी समर से पहले मुश्किलें

इस घटना ने साफ कर दिया है कि एनडीए गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे और टिकट को लेकर गहरी खींचतान है। चुनाव से ठीक पहले इस तरह का विवाद न सिर्फ स्थानीय स्तर पर संगठन की एकजुटता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि विरोधियों को भी बड़ा मुद्दा थमा सकता है।