बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में 37 टाइट सीटें फिर से सस्पेंस का केंद्र बनी हैं। 12 से 3000 वोट तक के अंतर वाली ये सीटें महागठबंधन और एनडीए के लिए निर्णायक साबित होंगी। बूथ स्तर पर चुनावी रणनीति और गठबंधन बदलने से समीकरण और उलझ गए हैं।

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव में हर बार कुछ सीटें ऐसी रहती हैं, जिनका परिणाम आखिरी वक्त तक सस्पेंस से भरा रहता है। 2020 के विधानसभा चुनाव में ऐसा ही रोमांच देखा गया, जब राज्य की लगभग 37 सीटें ऐसी थीं, जहां जीत-हार का फैसला महज 3000 या उससे भी कम वोटों के अंतर से तय हुआ। इन सीटों पर मामूली वोटों का इधर-उधर होना चुनाव की तस्वीर पूरी तरह पलट सकता है, और यही कारण है कि सभी राजनीतिक दल इन क्षेत्रों पर खास ध्यान दे रहे हैं।

2020 चुनाव में 37 सीटों पर मुकाबला इतना कड़ा था कि हार-जीत का अंतर तीन हजार या उससे भी कम मतों का रहा। इनमें 17 सीटें महागठबंधन के खाते में गईं, 19 सीटों पर एनडीए ने कब्जा जमाया और 1 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुआ।

राज्य की 'सबसे ज्यादा थ्रिल वाली' सीट हिलसा रही, जहां जदयू के कृष्ण मुरारी शरण 12 वोटों से ही राजद के शक्ति सिंह यादव को हरा सके। इस पर चुनावी धांधली के आरोप तक लगे थे। सिमरी बख्तियारपुर में विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी सिर्फ 1759 वोटों की वजह से हार गए थे, वहीं दरभंगा ग्रामीण और मटिहानी जैसी सीटों पर भी अंतर बेहद मामूली रहा।

सियासी समीकरण

इन सीटों पर कई दिलचस्प राजनीतिक बदलाव भी सामने आए। कई दिग्गज या तो पार्टी बदल चुके हैं या फिर चुनाव के बाद प्रतिद्वंद्वी गठबंधन का रुख कर चुके हैं, जैसे दरभंगा ग्रामीण में जदयू के डॉ. फराज फातमी अब राजद में हैं जबकि मटिहानी के लोजपा विधायक राजकुमार सिंह इस समय जदयू का हिस्सा हैं।

गठबंधन बदलने और समीकरण बदलने से अगले चुनाव का गणित और ज़्यादा उलझ गया है। अब जिन सीटों पर महागठबंधन या एनडीए को छोटी बढ़त मिली थी, वहां पार्टी और उम्मीदवार बदलने से वोट शेयर के समीकरण पूरी तरह सीधा नहीं रह गया है।

निर्दलीयों ने भी दिया टक्कर

चकाई जैसी सीट पर निर्दलीय सुमित कुमार सिंह ने कड़ी जंग में 581 वोट के अंतर से महासंघ की उम्मीदवार को पटखनी दी थी। इसी तरह मटिहानी में लोजपा के प्रत्याशी ने जदयू को 333 वोट से हराया, और बाद में वे भी राजनीतिक समीकरण बदलते हुए जदयू में आ गए। राज्य की राजनीति में निर्दलीयों की यह मजबूत उपस्थिति आने वाले चुनावी नतीजों को और जटिल बना रही है।

बूथ स्तर की राजनीति और नई रणनीति

इन तमाम 'टाइट सीटों' पर दोनों प्रमुख गठबंधन और छोटे दल बूथ स्तर पर मजबूत संगठन और 'डोर-टू-डोर' चुनावी रणनीति अपना रहे हैं। क्योंकि 100-200 या हजार-डेढ़ हजार वोट का अंतर एक बड़ी जीत और बुरी हार दोनों में बदल सकता है। पिछले आंकड़ों से सभी दलों को समझ आ चुका है कि हर पन्ना-पन्ना और हर गांव-मुहल्ले की बिसात ही इन सीटों का परिणाम तय करेगी।

बिहार चुनाव 2025 में फिर से यह तीन दर्जन सीटें सबकी नजरों का केंद्र हैं। यहां हर मतदाता का वोट, हर घर और हर उम्मीदवार की व्यक्तिगत लोकप्रियता निर्णायक साबित होगी। ये सीटें सिर्फ जीत-हार का अंतर नहीं, बल्कि गठबंधन की नीति, आंतरिक डील और बड़ा सियासी संदेश भी देंगी। यही वजह है कि हर दल यहां सबसे ज्यादा फोकस, संसाधन और रणनीतिकार झोंक रहा है. क्योंकि 12 वोट से 3000 वोट तक की 'कसौटी' पर किस्मत नापी जाएगी।