1990 के दशक में बिहार में अपराध और राजनीति का आतंक फैलाने वाले बेगूसराय के अशोक सम्राट की कहानी। AK-47 से दहशत, खूनी गैंगवार और पुलिस मुठभेड़ से लेकर गरीबों की मदद और राजनीति में आने की लालसा तक, जानिए बिहार के सबसे बड़े डॉन की दास्तां।
पटनाः 1990 के दशक का बिहार राजनीति और अपराध का ऐसा संगम, जिसमें वोटों की तिकड़म, बाहुबल, गैंगवार और पुलिसिया गोलीबारी आम बात थी। उसी समय की बात है बेगूसराय के तेघड़ा गांव में किसान परिवार में जन्मे अशोक शर्मा पढ़ाई में तेज और डबल एमए (MA) कर चुका था। पिता चाहते थे बेटा ऑफिसर बने, खुद भी अशोक ने दारोगा बनने की कोशिश की, लेकिन किस्मत ने उसकी राह बदल दी। एक झटके में दोस्ती की भावुकता और दोस्त रामविलास की आत्महत्या के प्रयास ने अशोक को अपराध की दुनिया के रास्ते पर धकेल दिया। दोनों दोस्तों ने मौत को गले लगाने की कोशिश की, लेकिन वे बच गए, फिर जन्म हुआ अपराधी अशोक का, जिसने आगे चलकर अपना नाम रखा 'अशोक सम्राट'।
AK-47 से मौत का कारोबार करता था अशोक सम्राट
अशोक सम्राट ने बिहार की क्राइम हिस्ट्री में पहली बार AK-47 जैसा खतरनाक हथियार उतारा। उस दौर में सूबे की किसी भी पुलिस थाने में शायद ही ऐसी बंदूक थी, लेकिन अशोक सम्राट के गैंग में AK-47 आम थी। कहा जाता है, खालिस्तानी और हथियार तस्करों के जरिये सम्राट ने कई AK-47 हथियार अपने गिरोह तक पहुँचाए। अपराध का साम्राज्य यूं फैला कि बरौनी रिफाइनरी से लेकर रेलवे, जमीन, मोकामा, लखीसराय, वैशाली, और यहां तक यूपी के गोरखपुर तक उसका नाम दहशत का दूसरा नाम था। राजनीति का दोस्त, हर पार्टी का संकटमोचक, चुनाव में किसी को जिताना-हराना उसी के इशारे पर होता। बूथ कैप्चरिंग, जबरन वोटिंग, मर्डर, अपहरण, उसकी दिनचर्या बन गए थे।
सूरजभान-साम्राज्य से टक्कर और खूनी गैंगवार
मोकामा के कुख्यात माफिया सूरजभान उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बना। दोनों के बीच गैंगवार बिहार की राजनीति से लेकर अपराध जगत में चर्चित हो गए। रेलवे के ठेकों, जमीन और वर्चस्व के लिए खूनी गैंगवार बरसों चला। दर्जनों एनकाउंटर, सैकड़ों हत्या, अशोक का खौफ ऐसा कि पुलिस वाले भी एक्शन लेने से कतरा जाते थे। पूर्व आईपीएस गुप्तेश्वर पांडे तक ने माना कि सम्राट बिहार का सबसे बड़ा अपराधी था। 1993-94 के दौरान बेगूसराय में 42 मुठभेड़ें हुईं और उनमें 50 से ज्यादा अपराधी मारे गए।
खौफ का दूसरा चेहरा, ‘गरीबों का मसीहा’
अशोक सम्राट की सख्त बाहुबली छवि के पीछे एक दूसरा चेहरा भी था। कानून-व्यवस्था को अंगूठा दिखाने वाला यही डॉन अपने गांव, इलाके के गरीबों की मदद, मंदिर में रोज पूजा करने और सामाजिक कामों में हिस्सा भी लेता था। यही काम उसका जनाधार भी बढ़ाते थे। उसकी महत्वाकांक्षा थी राजनीति में 'माननीय' समझा जाना। बाहुबली नेता आनंद मोहन उसका करीबी था, उन्हीं के सहारे राजनीति में उतरकर सफेदपोश बनने का सपना देखने लगा था।
एनकाउंटर, अंत और विरासत
लेकिन राजनीति में आने का मौका किस्मत ने उससे छीन लिया। 5 जनवरी, 1995 का दिन था, हाजीपुर में रेलवे टेंडर के सौदे के दौरान जांबाज पुलिस अफसर शशिभूषण शर्मा की टीम ने उसे घेर लिया। भीषण मुठभेड़ हुई, डॉन के पास AK-47, पुलिस के पास सिर्फ पिस्टलें, लेकिन घंटों की गोलीबारी के बाद अशोक सम्राट मारा गया। उसके साथ एक युग, एक गैंगवार, एक 'डॉन कल्चर' का भी खात्मा हो गया। शशिभूषण को उनके अद्भुत साहस के लिए राष्ट्रपति पदक और डीएसपी पद पर प्रमोशन मिला।
आज भी बिहार में जब कभी AK-47, संगठित अपराध या गैंगवार की दास्तां सुनाई देती है, तो बेगूसराय के 'अशोक सम्राट' का नाम सबसे पहले लिया जाता है क्योंकि वह था, ‘रंगदारों का रंगदार’, ‘डॉन ऑफ AK-47’ जिसका खौफ बिहार-यूपी की सीमाओं तक गूंजता रहा।
