तेजस्वी यादव ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर महागठबंधन में भूचाल ला दिया है। मतदाताओं से सीधे अपने नाम पर वोट मांगकर उन्होंने कांग्रेस समेत सहयोगी दलों को बड़ा सियासी संदेश दिया है। क्या चुनावी समीकरण पलटने वाले हैं?
Tejashwi Yadav Bihar Elections 2025: बिहार की राजनीति में फिर से हलचल मच गई है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ऐलान किया है कि वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। यह बयान सिर्फ चुनावी रणनीति है या महागठबंधन (Mahagathbandhan) में किसी बड़े संकट का संकेत? यही सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है।
क्या महागठबंधन में दरार की आहट?
तेजस्वी यादव का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब विपक्षी महागठबंधन (Congress, CPI, Left पार्टियों समेत) सीट बंटवारे पर चर्चा की तैयारी कर रहा है। तेजस्वी ने रैली में कहा— “इस बार तेजस्वी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। बोचहां हो या मुजफ्फरपुर, तेजस्वी लड़ेंगे। आप सब मेरे नाम पर वोट करें।” इस बयान के बाद से ही सियासी गलियारों में चर्चा है कि क्या यह महागठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़ा करता है।
2020 के चुनाव नतीजे क्यों हैं अहम?
- 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम आज भी महागठबंधन के लिए सबक हैं।
- RJD ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटें जीतीं।
- कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 19 पर जीत पाई।
- भाजपा ने 74 सीटें, जदयू ने 43 सीटें जीती थीं।
यानी, राजद का स्ट्राइक रेट सबसे मजबूत रहा था, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। यही वजह है कि तेजस्वी इस बार अपने दम पर पूरे राज्य में अपील कर रहे हैं।
क्या कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी?
तेजस्वी यादव के बयान से कांग्रेस और अन्य सहयोगियों की चिंता बढ़ना तय है। कांग्रेस पहले ही ज्यादा सीटों की मांग करने की तैयारी में है, लेकिन तेजस्वी का “243 सीटों पर चुनाव” वाला संदेश कहीं न कहीं दबाव की राजनीति भी माना जा रहा है।
जनता के मन में क्या सवाल?
तेजस्वी यादव ने अपने नाम पर वोट देने की अपील कर एक नया राजनीतिक प्रयोग शुरू किया है। सवाल यह है—
- क्या RJD महागठबंधन छोड़कर अकेले मैदान में उतर सकती है?
- क्या यह बयान सिर्फ कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति है?
- क्या मतदाता तेजस्वी को अकेले मौका देंगे?
बिहार की राजनीति में सस्पेंस बरकरार
तेजस्वी यादव का यह बयान बिहार की राजनीति को और दिलचस्प बना देता है। फिलहाल, किसी भी सहयोगी दल ने खुलकर आपत्ति नहीं जताई है, लेकिन अंदरखाने सीटों के बंटवारे को लेकर असहमति गहराने की अटकलें तेज़ हैं। यह या तो उनकी आत्मविश्वास भरी रणनीति है या फिर महागठबंधन में दरार का शुरुआती संकेत। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में सहयोगी दल इस चुनौती पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं।
