बिहार चुनाव 2025 में तेजस्वी यादव कमजोर दिखे। नौकरी के खोखले वादे, गठबंधन में कलह और पारिवारिक विवाद ने उनकी राह मुश्किल की। वहीं, NDA कल्याणकारी योजनाओं के सहारे स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के शुरुआती रुझान साफ-साफ बता रहे हैं कि तेजस्वी यादव का ‘तेज’ इस बार फीका रहा। मुख्यमंत्री बनने का सपना तो दूर, उनके नेतृत्व में राजद और पूरे महागठबंधन का सूपड़ा साफ हो गया। दूसरी ओर, एनडीए प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने की ओर है। सवाल है कि तेजस्वी यादव आखिर कहां चूक गए? क्यों जनता ने उस गठबंधन को नकार दिया जो खुद को बदलाव का चेहरा बताता था?
1. सरकारी नौकरी का ‘डेढ़ करोड़ वाला’ वादा उलटा असर कर गया
तेजस्वी यादव ने हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया। लेकिन जमीनी सच ये है कि बिहार में करीब 2.5 करोड़ परिवार हैं और सरकारी नौकरी में कुल कर्मचारी 15 लाख से भी कम। ऐसे में 5 साल में लगभग 1.5 करोड़ सरकारी नौकरियां… लोगों को बात हवा-हवाई लगी। वोटर ने पूछा, “पिछली बार सरकार में थे, तब कितनी नौकरी दी?” जवाब जनता को नहीं मिला, और वादा उलटा पड़ गया।
2. वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का वादा
तेजस्वी ने चुनाव के दौरान VIP प्रमुख मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद देने की बात कही। कई लोगों को लगा कि सहनी का जनाधार इतना बड़ा नहीं कि उन्हें सीधा डिप्टी सीएम बनाया जाए। मुस्लिम वोटर खास तौर पर असमंजस में पड़ गया कि उनके लिए क्या गारंटी है, इसने महागठबंधन के भीतर भी शंका पैदा कर दी।
3. महागठबंधन में आख़िरी समय तक खींचातानी
सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और राजद में दिनों तक रस्साकशी चलती रही। कई सीटों पर दोनों ने बिना समझौते के उम्मीदवार उतार दिए। अंत में तालमेल तो हुआ, लेकिन तब तक मैदान बदल चुका था। संदेश जा चुका था कि गठबंधन अंदर से कमजोर है। राजद का भरोसा कम, शक ज्यादा दिखा।
4. परिवारिक झगड़ा और तेज प्रताप की बगावत ने नुकसान बढ़ाया
तेज प्रताप यादव का अलग पार्टी बनाकर मैदान में उतरना और भाई के खिलाफ बयान देना, राजद समर्थकों को बिल्कुल पसंद नहीं आया। तेज प्रताप का ये बयान सबसे ज्यादा वायरल हुआ, “तेजस्वी महुआ चले गए तो मुझे राघोपुर जाना ही था।” भले वोट पर असर कम हो, लेकिन इमेज पर असर बहुत हुआ।
5. पिछले चुनाव की सफलता का ‘ओवरकॉन्फिडेंस’ भारी पड़ा
2020 में राजद ने दमदार प्रदर्शन किया था। उसी सफलता के आधार पर तेजस्वी ने मान लिया कि इस बार भी लहर उनके पक्ष में है। गठबंधन की बात कम और खुद के चेहरे की मार्केटिंग ज्यादा की। वोटर को यह आत्मविश्वास नहीं, बल्कि अहंकार जैसा लगा।
6. NDए की ‘रेवड़ी पॉलिटिक्स’ और नीतीश-मोदी मॉडल ने बाजी मार ली
चुनाव से ठीक पहले नीतीश सरकार ने कई योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाया। जैसे छात्राओं को आर्थिक सहायता, राशन-पेंशन वितरण, पंचायत स्तर पर तेजी से हुए काम और चुनाव से ठीक पहले महिला रोजगार योजना के तहत 10000 रुपये। लोगों ने सोचा, “जो अभी दे रहा है, उसी के पास भरोसा है। वादे करने वालों पर क्यों दांव लगाएं?” एनडीए की यही रणनीति राजद पर भारी पड़ी।
7. तेजस्वी के आख़िरी क्षण में किए ‘बड़े वादे’ चुनावी जादू न बना सके
प्रचार के अंतिम दिन तेजस्वी ने महिलाओं को 30-30 हजार देने का वादा कर दिया। लोगों को यह एग्जाम टाइम में रात भर पढ़ने वाला आखिरी-मिनट का प्रयास लगा। जब वोटर पहले ही सरकार की ओर से राहत पा चुका था, तो नए वादे पर भरोसा करना मुश्किल था।
