सार

Naxal Attack in Chhattisgarh: भगवान श्री राम ने अपना वनवास के कुछ समय छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा क्षेत्र में ही बिताएं। उन दिनों इसे दण्डकारण्य कहा जाता था। भगवान राम की कर्म भूमि रहा यही दण्डकारण्य अब नक्सलियों का अड्डा बन गया है। 

Naxal Attack in Chhattisgarh (रायपुर)। भगवान श्री राम ने अपना वनवास के कुछ समय छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा क्षेत्र में ही बिताएं। उन दिनों इसे दण्डकारण्य कहा जाता था। भगवान राम की कर्म भूमि रहा यही दण्डकारण्य अब नक्सलियों का अड्डा बन गया है। नक्सली इतिहास की सबसे बड़ी वारदात भी दंतेवाड़ा में ही घटी। वर्ष 2010 में दंतेवाड़ा में नक्सलियों के हमल में 76 जवानों की मौत हो गई थी। उस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। आलम यह था कि शहीदों के शवों को देखने वालों के हाथ-पांव भी थर-थर कांप रहे थे। आंसूओं का सैलाब उमड़ पड़ा था। देश की पांच बड़ी नक्सल घटनाएं इसी क्षेत्र में घटी। आपको बता दें कि दंतेवाड़ा जिले से ही अलग होकर 2007 में बीजापुर और 2012 में सुकमा जिला बना था।

  • 6 अप्रैल 2010 का दिन भुलाया नहीं जा सकता। नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में सिक्योरिटी फोर्स पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया था। सीआरपीएफ के जवान नक्सलियों की तलाश में निकले थे। सर्चिंग के बाद सभी जवान चिंतलनार वापस आ रहे थे। सुबह का समय था। ताड़मटेला गांव के पास थके हुए जवान आराम कर रहे थे। 1000 नक्सलियों ने जवानों के लौटने के रास्ते पर एंबुश लगाकर अपना निशाना बनाया था। नक्सलियों की अंधाधुंध फायरिंग में 76 जवान शहीद हुए थे, जबकि 8 नक्सली मारे गए थे। इतना ही नहीं नक्सलियों ने हमले के बाद जवानों के असलहे और मिलिट्री शूज भी लूट लिए। कहा जाता है कि नक्सलियों की मौजूदगी की वजह से ताड़मटेला इलाके पर आज भी प्रशासन का दबदबा नहीं बन सका है।
  • 24 अप्रैल, 2017 को नक्सलियों ने सुकमा में जिले में बड़ा हमला किया था। बुरकापाल हमले में सीआरपीएफ के 25 जवानों की मौत हो गई थी, कई घायल भी हुए थे।
  • 9 अप्रैल, 2019 को नक्सलियों ने एक बार फिर दंतेवाड़ा जिले को दहला दिया था। बीजेपी विधायक भीमा मंडावी और चार सुरक्षाकर्मी एक नक्सली विस्फोट में मारे गए थे।
  • 21 मार्च 2020 को सुकमा जिले में 17 जवान शहीद हो गए थे। नक्सलियों ने मिनपा इलाके में यह हमला किया था।
  • 3 अप्रैल 2021 को सुकमा और बीजापुर जिलों के बार्डर पर नक्सलियों के हमले में 22 जवान शहीद हुए थे। पहले से घात लगाए बैठे नक्सलियों के हमले में कई जवान घायल भी हुए थे।

दंतेवाड़ा का क्या है इतिहास?

ऐसा नहीं कि दंतेवाड़ा शुरु से ऐसा ही था। दरअसल, स्वतंत्रता से पहले यह बस्तर रियासत का हिस्सा था। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद बस्तर के शासक ने भारत गणराज्य चुना और इसे मध्य प्रदेश के बस्तर जिले के रूप में पहचान मिली। वर्ष 1998 में बस्तर जिले को बस्तर, दंतेवाड़ा और कांकेर जिले में विभाजित कर दिया गया। वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ तो दंतेवाड़ा नये राज्य में शामिल हो गया। यह जिला नक्सली वारदातों को लेकर अक्सर चर्चा में रहता है। दंतेवाड़ा जिले से अलग करके 1 मई 2007 को बीजापुर जिला बनाया गया और वर्ष 2012 में दंतेवाड़ा से विभाजित होकर सुकमा जिला अस्तित्व में आया।

दंतेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है शहर

दंतेवाड़ा जिले और शहर का नाम इस इलाके की आराध्य देवी मॉं दंतेश्वरी के नाम से पड़ा। अनुश्रुति के अनुसार, दक्ष यज्ञ के दौरान मॉं सती के 52 अंगों में से एक यहाँ गिरा था और दंतेश्वरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई। जिले में लौह अयस्क, यूरेनियम, ग्रेनाइट, ग्रेफाइट, चूना पत्थर और संगमरमर भी पाया जाता है।

क्या है नक्सलवाद?

दरअसल गरीब, शोषित जनता को अधिकार दिलाने के लिए शुरु हुई यह लड़ाई समय के साथ अपना रुप-रंग बदल चुकी है। आजादी से पहले इसे देश प्रेम समझा जाता था। आजादी के बाद माओवाद का तड़का लगने के बाद यह चिंगारी ज्वाला बन गई। फिर जमींदार व सरकार के खिलाफ आंदोलन जारी रहा।

2005 में सलवा जुडूम भी शुरु हुआ

छत्तीसगढ़ में जब नक्सली वारदातें बढ़ने लगीं तो वर्ष 2005 में सलवा जुडूम ( Salwa Judum) (शांति का कारवाँ) की शुरुआत हुई। इसका मकसद नक्सलवादियों या माओवादियों से मुकाबला करने में आम लोगों की भागीदारी तय करना था। इसमें राज्य सरकार ने भी अपना समर्थन दिया। कार्यकर्ताओं को हथियार दिए गए। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में आदिवासी इस आन्दोलन से जुड़ते गए। इससे जुड़ने वालों को विशेष पुलिस अधिकारी बनाकर कैम्पों में बसाया जाने लगा। फिर नक्सली और सलवा जुडूम कार्यकर्ताओं के बीच झड़पें बढ़ गईं। 5 जुलाई 2011 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह बंद हुआ। पर नक्सल वारदातें थमी नहीं। साल दर साल लाल सलाम जारी है।