सार

दिल्ली चुनाव में पानी का मुद्दा गरमाया हुआ है। केजरीवाल ने चुनाव आयोग को 6 पन्नों का जवाब दिया और 'जहरीले पानी' के आरोपों पर सफाई दी। उन्होंने हरियाणा सरकार पर राजनीतिक षड्यंत्र का आरोप लगाया है।

Delhi Assembly Election 2025: हिन्दी में मुहावरा है- पानी में आग लगाई। इसका मतलब है असंभव काम को संभव कर दिखलाना। दिल्ली के चुनाव को पानी के जरिए प्रभावित करने वालों की कोशिशों पर मानो अरविन्द केजरीवाल ने पानी फेर दिया हो। चुनाव आयोग को भी केजरीवाल ने चित्त कर दिखलाया है। चुनाव आयोग को भी एक्सपोज करने का काम अरविन्द केजरीवाल ने कर दिखाया है।

दिल्ली की जनता और प्रजातंत्र बचाने के लिए किसी भी कार्रवाई का सामना करने का एलान करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने चुनाव आयोग को 6 पन्नों का जवाब सौंप दिया। चुनाव आयोग ने केजरीवाल को चिट्ठी लिखकर 31 जनवरी की सुबह 11 बजे तक यह बताने को कहा था कि सबूत के साथ बताएं कि हरियाणा की ओर से दिल्ली को ‘जहरीला पानी’ भेजा गया। ‘जहर’ में क्या था, किस जगह से सैंपल लिया गया, किसने जांच की और किन आधारों पर आपूर्ति किए गये पानी को ‘जहर’ माना गया?

चुनाव आयोग की भाषा पर आपत्ति

अरविन्द केजरीवाल ने चुनाव आयोग को चिट्ठी सौंपने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेन्स भी की और अपने नाम चुनाव आयोग के नोटिस में प्रयोग की गई भाषा पर सवाल उठाए। केजरीवाल ने कहा कि ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग ने कार्रवाई का मन बना लिया है। केजरीवाल ने कहा कि खुलेआम साड़ियां बांटी जा रही हैं, शॉल बांटे जा रहे हैं, रकम बांटी जा रही है लेकिन चुनाव आयोग को ये सब दिखता नहीं है। आयोग कहता है कि सबूत नहीं है।

अरविन्द केजरीवाल ने पानी के मुद्दे को बहुत बड़ा मुद्दा बताया है। उन्होंने कहा कि अभी अगर इसे नहीं रोका गया तो जिस राज्य में चुनाव हुआ करेगा वहां की ओर जाने वाले पानी को दूसरा राज्य इसलिए रोक देगा ताकि वहां आर्टिफिशिएल वाटर क्राइसिस पैदा हो। राजनीतिक लाभ लेने के लिए पानी के दुरुपयोग पर वे व्हिसिल बजा रहे हैं, लोकतंत्र की रक्षा कर रहे हैं तो चुनाव आयोग उन्हें ही नोटिस भेज रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री से एक बार भी सवाल नहीं पूछे गये हैं जो वास्तव में इस घटना के अहम किरदार हैं।

शोर किया तो आमोनिया का स्तर घट गया

अरविन्द केजरीवाल ने आंकड़ों के साथ यह स्थापित करने की कोशिश की कि 15 जनवरी से 26 जनवरी के बीच हरियाणा से दिल्ली आने वाले पानी में आमोनिया का स्तर 3.2 पीपीएम से बढ़कर 7 पीपीएम होना स्वाभाविक घटना नहीं है। इस दौरान मुख्यमंत्री आतिशी ने तीन-तीन बार हरियाणा के सीएम से बात की मगर कोई नतीजा नहीं निकला। मंत्रालय के सचिव स्तर पर भी दिल्ली और पंजाब की ओर से हरियाणा के साथ बातचीत की गयी। मगर, जवाब चौंकाने वाला था। नौकरशाहों की प्रतिक्रिया थी कि यह मामला उंचे स्तर का और राजनीतिक है इसलिए सीएम से सीएम बात किया जाए। इन प्रतिक्रियाओं को केजरीवाल ने संदेहजनक करार दिया। आखिरकार दिल्ली की सीएम जनता के बीच आने और प्रेस कॉन्फ्रेन्स करने को मजबूर हुई।

अरविद केजरीवाल ने कहा कि 31 जनवरी को हरियाणा से दिल्ली आ रहे पानी में पीपीएम लेवल 2.1 है। यह वाटर ट्रीटमेंट के लायक है। 7 पीपीएम आमोनिया अगर घटकर 2.1 पीपीएम पर आ गया तो ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शोर मचाया गया। केजरीवाल ने पूछा कि जब शोर मचाने से पीपीएम घट सकता है तो इसका मतलब है कि यह सब जानबूझकर राजनीतिक षडयंत्र के तहत किया गया। इसका मकसद दिल्ली की जनता के बीच कृत्रिम जलसंकट पैदा करना था ताकि वे सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के खिलाफ वोट करने को तैयार हो जाएं। अगर समय रहते मुख्यमंत्री आतिशी ने आवाज़ नहीं उठाई होती तो दिल्ली के एक करोड़ लोग पानी के संकट से जूझ रहे होते।

आयोग ने नोटिस में ही मान लिया केजरीवाल को ‘आरोपी’

चुनाव आयोग ने जो चिट्ठी लिखी है उसकी भाषा पर भी गौर करना जरूरी है। पढ़ने से ऐसा लगता है मानो आयोग ने मान लिया है कि अरविन्द केजरीवाल दो राज्यों के बीच दुश्मनी पैदा कर रहे हैं। केजरीवाल को लिखी चिट्ठी चुनाव आयोग ने है, “आयोग ने प्रथम दृष्टया पाया है कि यमुना नदी में जहर मिलाने के बारे में आपके आरोप विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य और दुश्मनी को बढ़ावा देते हैं तथा गंभीर व्याख्या करें तो समग्र सार्वजनिक अव्यवस्था और अशांति को बढ़ावा देते हैं।“ सवाल यह है कि अरविन्द केजरीवाल का लिखित जवाब मिलने से पहले ही नोटिस में केजरीवाल को दोषी मान लेना क्या पक्षपाती नजरिया नहीं है? अरविन्द केजरीवाल ने यह भांपते हुए कि चुनाव आयोग उनके खिलाफ सख्त कदम उठाने जा रहा है, अब टकराव का रास्ता अख्तियार कर चुके हैं।

अरविन्द केजरीवाल ने 7पीपीएम आमोनिया वाला पानी तीन बोतलों में चुनाव आयोग को पहुंचा दिया है। उन्होंने ये बोतलें अमित शाह, जेपी नड्डा और राहुल गांधी को भी ये बोतलें भिजवाई हैं। केजरीवाल ने चुनौती दी है कि वे इस पानी को प्रेस कॉन्फ्रेन्स करके पी कर दिखलाएं। कांग्रेस और बीजेपी ने इस पर प्रतिक्रिया दी है कि साफ पानी देने का दावा करने वाले आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल को यह पानी पीकर यह बताना चाहिए कि उन्होंने यमुना को साफ कर दिया है। जबकि, केजरीवाल का तर्क है कि ये पानी 7 पीपीएम के आमोनिया स्तर वाला पानी है जो पीने के लायक नहीं है और जहर जैसा है। इस पानी को पीकर उनके दावे को गलत ठहराया जा सकता है।

यमुना साफ नहीं हुई पर राजनीति गंदी होती चली गयी

पानी की पूरी कहानी पर वोटरों के लिए भी रास्ता चुनने का वक्त आ गया है। यमुना साफ नहीं हुई है ये सभी मानते हैं। अरविन्द केजरीवाल भी यह कह चुके हैं कि उनका यह वादा पूरा नहीं हुआ। मगर, इस वजह से क्या यमुना में आमोनिया वाले पानी की आपूर्ति को बर्दाश्त कर लिया जाएगा? मुख्यमंत्री की अपील और आग्रह के बावजूद हरियाणा से दिल्ली आने वाले पानी में आमोनिया का स्तर कम क्यों नहीं हुआ? और, जैसे ही अरविन्द केजरीवाल ने इस मुद्दे पर हंगामा बरपाया, पानी में आमोनिया का स्तर कम हो गया! यह आश्चर्य की बात है! अरविन्द केजरीवाल कह रहे हैं कि इस राजनीतिक षडयंत्र को पहचानने की जरूरत है। आम आदमी पार्टी की सरकार को बदनाम करने के लिए संगठित प्रयास चल रहा है जिस पर रोक लगाने के लिए कार्रवाई होनी चाहिए। आवाज़ उठानेवाले पर कार्रवाई बिल्कुल गलत है।

(रंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार)

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