सार
गुजरात . भारत के दर्ज इतिहास को लेकर कई मतभेद हैं। कई सबूत बताते हैं कि असली इतिहास कुछ और ही है। आक्रमणकारियों को महिमामंडित करने वाले इतिहास में मूल इतिहास, भारतीयता, संस्कृति और परंपरा को छुपा दिया गया है। लेकिन समय-समय पर ऐसे प्रमाण मिलते रहते हैं जो बताते हैं कि भारत की असली कहानी हमारी कल्पना से भी परे है। अब श्रीकृष्ण की द्वारका के पास खंभात की खाड़ी में मिले एक महत्वपूर्ण सबूत ने दुनिया के इतिहास को हिला कर रख दिया है। जी हां, गुजरात में डूबी द्वारका नगरी से कुछ दूर खंभात की खाड़ी के पानी में मिले एक इंसानी कंकाल ने हमें 9,500 साल पुराने इतिहास में पहुँचा दिया है।
खंभात की खाड़ी में 120 फीट गहरे पानी में एक डूबे हुए शहर में इंसानी कंकाल मिला है। इस समाधि में इंसानी हड्डियों के अलावा, कुछ बर्तन और समाधि बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया बिस्तर जैसा ढांचा भी मिला है। हड्डियों और बर्तनों की कार्बन डेटिंग की गई है, जिसके नतीजों ने दुनिया को चौंका दिया है। क्योंकि इन चीजों और हड्डियों की उम्र 9,500 साल निकली है। यानी यह खोज भारत के इतिहास को 9,500 साल पीछे ले जाती है।
यह खोज न केवल यह बताती है कि 9,500 साल पहले मृतकों को सुरक्षित दफनाने की परंपरा थी, बल्कि यह उस समय की भारतीय परंपराओं और रीति-रिवाजों पर भी प्रकाश डालती है। समाधि के साथ मिले बर्तन बताते हैं कि उस समय भी भारत में आधुनिक काल जैसे बर्तन और परंपराएं मौजूद थीं। इस तरह, यह समाधि भारतीय परंपराओं के 9,500 साल पुराने इतिहास का प्रमाण देती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समाधि से भारत का इतिहास सिर्फ 9,500 साल तक सीमित नहीं हो जाता। क्योंकि किसी भी सभ्यता को जन्म लेने, विकसित होने और अपनी परंपराओं, संस्कृति और रीति-रिवाजों को स्थापित करने में हजारों साल लगते हैं। इसलिए, अगर समाधि 9,500 साल पुरानी है, तो सभ्यता का जन्म इससे भी पहले हुआ होगा।
हाई-रेजोल्यूशन सोनार स्कैन का उपयोग करके समाधि के आकार और अन्य जानकारियों का पता लगाया गया है। यहां इंसानी समाधि को व्यवस्थित और साफ-सुथरे तरीके से बनाया गया है। इस पर अध्ययन करने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और राष्ट्रीय समुद्री प्रौद्योगिकी संस्थान के पूर्व प्रमुख बद्री नारायण ने कुछ महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उन्होंने डूबे हुए शहर को भारतीय संस्कृति की जननी बताया है और कहा है कि यह सिंधु घाटी सभ्यता के जन्म और विकास का प्रमाण है। बद्री नारायण के अनुसार, यह समाधि भारतीयों के विश्वासों और रीति-रिवाजों पर प्रकाश डालती है।
इस समाधि को बनाने के लिए एक ही पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। उस समय भी शव को सुरक्षित रखने की कला मौजूद थी, इसलिए 9,500 साल बाद भी हड्डियां और बर्तन मिले हैं। हालांकि, कुछ पुरातत्वविदों का तर्क है कि सिर्फ कार्बन डेटिंग के आधार पर इतिहास का निर्धारण करना पर्याप्त नहीं है।