सार

हैदराबाद में भारतीय स्टेट बैंक के कर्मचारियों ने एक वरिष्ठ नागरिक को 13 लाख रुपये की धोखाधड़ी से बचाया। बैंक कर्मचारियों ने "डिजिटल अरेस्ट" के झांसे में फंसे ग्राहक की सही समय पर मदद की और उसे धोखाधड़ी से बचाया। जानें कैसे?

 

हैदराबाद। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और उसके कर्मचारियों को अक्सर आलोचनाओं और मीम्स का सामना करना पड़ता है, लेकिन हैदराबाद में एक ब्रांच के कर्मचारियों ने हाल ही में एक बुजुर्ग ग्राहक की मदद की, जिससे उनके 13 लाख रुपये लुटने से बच गए। यह घटना हैदराबाद के एक एसबीआई शाखा की है, जहां एक सीनियर सिटिजन, जो बैंक के लंबे समय से ग्राहक थे, को साइबर क्रिमिनलों ने 'डिजिटल अरेस्ट' के झांसे में फंसाने की कोशिश की।

बैंक में एफडी तुड़वाने गया था बुजुर्ग व्यक्ति

61 वर्षीय बाल रोग विशेषज्ञ को एक धोखेबाज ने विश्वास दिलाया कि वह किसी तरह के "डिजिटल अरेस्ट" के तहत है और उनसे कहा गया कि वह अपनी जानकारी को गोपनीय रखे। ग्राहक ने एसबीआई ब्रांच में आकर अपनी एफडी तोड़ने और पैसे निकाल कर देने को कहा, लेकिन बैंक कर्मचारी सूर्य स्वाति डी ने तुरंत बुजुर्ग की क्रिया कलाप पर संदेह जताया, क्योंकि ग्राहक का व्यवहार अजीब था।

बैंक कर्मचारी काे ग्राहक के व्यवहार पर हुआ शक तो रोका पेमेंट

बैंक कर्मचारी सूर्य स्वाति डी ने देखा कि ग्राहक तनाव में हैं तो उन्होंने उनसे स्पष्टीकरण मांगा। ग्राहक ने दावा किया कि उसे किसी जरूरी कारण से एफडी तोड़ने की आवश्यकता थी। इस उत्तर से आश्वस्त न होने पर बैंक कर्मी ने उन्हें शाखा प्रबंधक कुमार गौड़ के पास भेजा। प्रबंधक ने बताया कि वह शुरू में संपत्ति खरीदने की बात कह रहे थे। हालांकि जब संपत्ति के स्थान के बारे में पूछा गया, तो ग्राहक ने स्वीकार किया कि उसने अभी तक निर्णय नहीं लिया है, जिससे बैंक कर्मचारियों के बीच संदेह और बढ़ गया।

तीन दिन तक पैसे ट्रांसफर करने से बैंक करता रहा इनकार

बैंक कर्मचारियों ने ग्राहक को परिवार के किसी सदस्य के साथ वापस आने की सलाह दी। एक कर्मचारी ने बताया कि हमने 3 दिनों तक पैसे ट्रांसफर की प्रक्रिया करने से इनकार कर दिया। एक अवसर पर, ग्राहक ने बैंक कर्मी सूर्य स्वाति के कियोस्क पर जाने से कतराते दिखे, संभवतः बैंक कर्मी सूर्य स्वाती के सवालों से वो डरे हुए थे। इसके बजाय वह दूसरे सहयोगी के पास गए। हालांकि उस समय तक पूरी बैंक ब्रांच के कर्मचारियों को बुजुर्ग ग्राहक से जुड़ी स्थिति के बारे में सतर्क कर दिया गया था।

सच्चाई पता चलने के बाद बुजुर्ग को आया होश, जताया आभार

तीसरी बार बैंक में जाने पर बैंक ने ग्राहक को राष्ट्रीय साइबर अपराध हेल्पलाइन 1930 से जोड़ा, जहां उन्हें बताया गया कि "डिजिटल अरेस्ट" जैसी कोई चीज़ नहीं होती। 3 दिनों की परेशानी के बाद बुज़ुर्ग ग्राहक को आखिरकार एहसास हुआ कि उसके साथ धोखाधड़ी होने वाली है और उसने धोखेबाज़ के साथ कॉल खत्म कर दी। बाद में उसने बैंक कर्मचारियों को बताया कि ब्रांच में आने के दौरान वह धोखेबाज़ के साथ कॉल पर था, जिसने उसे बार-बार बैंक कर्मचारियों पर भरोसा न करने के लिए कहा था।