सार

देश में शहरों के नाम बदलने का सिलसिला चल रहा है। इसी प्रॉसेस में मध्य प्रदेश सरकार ने 2 अप्रैल को सीहोर जिले के सब डिविजनल नसरुल्लागंज(renamed Nasrullahganj) का नाम बदलकर भैरूंदा(Bhainrunda) किया है।

भोपाल. देश में शहरों के नाम बदलने का सिलसिला चल रहा है। इसी प्रॉसेस में मध्य प्रदेश सरकार ने 2 अप्रैल को सीहोर जिले के सब डिविजनल नसरुल्लागंज(renamed Nasrullahganj) का नाम बदलकर भैरूंदा(Bhainrunda) किया है। केंद्र सरकार से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद मप्र सरकार ने इसके लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। कहा जा रहा है कि यहां के लोग लंबे समय से नाम बदलन की मांग कर रहे थे।

मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एरिया है नसरुलागंज

नसरुल्लागंज बुधनी विधानसभा क्षेत्र में आता है। यहां से मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधायक हैं। पिछले दिनों मप्र सरकार ने होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम किया था। इससे पहले हबीबगंज रेलवे स्टेशन को रानी कमलापति रेलवे स्टेशन; भोपाल के प्रमुख कन्वेंशन सेंटर मिंटो हॉल को कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर और हलालपुर बस स्टैंड को हनुमानगढ़ी नाम दिया था। ये जो नाम बदले गए हैं, वे सभी मुस्लिम थे।

बेगम सुल्तान जहां के सबसे बड़े बेटे थे नसरुल्लाह खान

नसरुल्लाह खान (1876-1924) भोपाल की तत्कालीन रियासत की चौथी महिला शासक बेगम सुल्तान जहां के सबसे बड़े बेटे थे। वैसे तो नसरुल्लाह खान भोपाल की रियासत के वारिस थे, लेकिन उनकी मौत तब हो गई थी, जब मां शासक थी। नसरुल्लाह खान के बच्चों को भोपाल के शासन की दावेदारी नहीं मिल सकी। बल्कि उनके चाचा हमीदुल्लाह खान (1894-1960) की ताजपोशी करा दी गई। बेगम सुल्तान जहां (1858-1930) ने उनके फेवर में गद्दी छोड़ दी थी।

हिंदू विरोधी नहीं थे नसरुल्लाह खान

भोपाल के इतिहासकार बताते हैं कि नसरुल्लाह खान हिंदू प्रजा के खिलाफ कभी नहीं रहे। ऐसा कोई रिकॉर्ड भी नहीं मिलता है। नसरुल्लाह खान भोपाल में बेगमों की तीन पीढ़ियों के बाद पैदा हुए पहले बेटे थे। उन्हें ही भोपाल की गद्दी मिलनी थी। इसके लिए उनकी ट्रेनिंग भी शुरू हो गई थी। उनमें शासक बनने के गुण भी थे।

सुल्तान जहां बेगम का नसरुल्लाह खान को लेटर

सुल्तान जहां बेगम का बेटे नसरुल्लाह खान को लिखा गया खत इस बात की गवाही देता है कि वे चाहती थीं कि नसरुल्लाह खान भोपाल की गद्दी पर बैठें। नसरुल्लाह खान के बार में कहा जाता है कि वे सभी धर्मों को तवज्जो देते थे। 1903 के आसपास भोपाल में स्पेनिश फ्लू और प्लेग (Spanish flu and plague hit Bhopal 1903) फैला था। नसरुल्लाह खान सभी पीड़ितों के अंतिम संस्कार में शामिल होते थे। जबकि वो जानते थे कि इससे संक्रमण का खतरा है।

आबिदा सुल्तान की किताब मेमोयर्स ऑफ ए रिबेल प्रिंसेस

नसरुल्लाह खान संयमित व्यक्ति थे। उनकी भतीजी आबिदा सुल्तान ने अपने बुक मेमोयर्स ऑफ ए रिबेल प्रिंसेस-Memoirs of a Rebel Princess by Abida Sultan में लिखा- 'मेरे सबसे बड़े चाचा एक विनम्र और आज्ञाकारी चरित्र थे। उनकी जीवन में मुख्य रुचि शिकार और कारों में थी।'

नसरुल्लाह खान को शुगर थी

नसरुल्लाह खान हाईली डायबिटिक थे। 40 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई थी। उनके दो बेटे, हबीबुल्ला और रफीकुल्ला थे, जिन्हें उनकी दादी ने उपाधि से वंचित कर दिया था। यही नहीं, भोपाल की सत्ता अपने सबसे छोटे बेटे हमीदुल्लाह खान को दे दी थी। हबीबगंज रेलवे स्टेशन, जिसे रानी कमलापति रेलवे स्टेशन कहा जान लगा है, इसका नाम हबीबुल्लाह के नाम पर हबीबगंज रखा गया था।

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