Viral Chaos In Yes Bank: नागपुर के यस बैंक में घुसे मनसे कार्यकर्ता, अचानक हमला, थप्पड़ और नारेबाज़ी! कर्ज़दार की जब्त मशीन बना विवाद की जड़ या बहाना? बैंक की दीवारों पर स्याही, वायरल वीडियो ने मचा दिया हड़कंप… क्या थी इस हमले की असली वजह?
MNS Workers Attack Yes Bank Nagpur: यस बैंक (Yes Bank) नागपुर हमला, मनसे कार्यकर्ताओं का हंगामा, राज ठाकरे की पार्टी विवाद, कर्ज़दार की मशीन ज़ब्ती, और सोशल मीडिया वायरल वीडियो जैसे कीवर्ड्स इस घटना को वायरल बनाने के केंद्र में हैं। नागपुर की माउंट रोड शाखा पर जो कुछ हुआ, वो महज़ एक बैंक विवाद नहीं, बल्कि सियासत, सिस्टम और सड़कों के न्याय का एक विस्फोटक मिश्रण है। बैंक, ग्राहक, और मनसे-तीनों पक्षों की कहानी में छुपा है एक गहरा राज़।
कर्ज़दार की शिकायत या राजनीतिक प्रदर्शन?
नागपुर के इंद्रजीत मुले नामक व्यक्ति ने यस बैंक से ऋण पर एक अर्थ-मूविंग मशीन खरीदी थी। मुले के अनुसार, वह किस्तें नहीं चुका पा रहे थे और बैंक से बार-बार मदद की गुहार लगाई, लेकिन उन्हें कोई समाधान नहीं मिला। उनकी मशीन तब ज़ब्त कर ली गई जब वह उसे आरटीओ ले गए थे। दावा है कि बैंक ने उन्हें कोई सूचना दिए बिना ही मशीन बेच दी। इस अपमानजनक अनुभव से ग़ुस्साए मुले ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) से मदद मांगी। इसके बाद जो हुआ वो सिर्फ विरोध नहीं, हिंसा में बदल गया।
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Yes Bank के भीतर क्यों भड़का बवाल?
सोमवार को मनसे कार्यकर्ता नागपुर स्थित यस बैंक की माउंट रोड शाखा में घुस गए। उन्होंने बैंक कर्मचारी को थप्पड़ मारा, दीवारों पर "भ्रष्ट बैंक", "महाराष्ट्र विरोधी" जैसे नारे लिखे और नेमप्लेट पर काली स्याही फेंकी। यह पूरा घटनाक्रम सोशल मीडिया पर रिकॉर्ड होकर वायरल हो गया। पुलिस मौके पर पहुँची और कुछ कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया। बैंक परिसर की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और मामले की जाँच जारी है।
क्या मनसे का ये क़दम जनसेवा है या सियासी रणनीति?
मनसे ने दावा किया कि उन्होंने एक आम नागरिक के साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। लेकिन थप्पड़, तोड़फोड़ और बैंक परिसर में घुसकर हिंसा जैसे कृत्य पर लोगों में सवाल उठ रहे हैं-क्या यह आंदोलन जायज़ था? बैंक अभी तक चुप है, कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। पुलिस सीसीटीवी और बैंक स्टाफ के बयानों के आधार पर कार्रवाई कर रही है।
यह पहला मामला नहीं…मराठी विवाद के बाद फिर हंगामा
कुछ दिन पहले मराठी भाषा में एफआईआर के हिंदी अनुवाद को लेकर भी मनसे कार्यकर्ता एक अन्य बैंक में हंगामा कर चुके हैं। ऐसे में सवाल ये है कि क्या मनसे बैंकों को राजनीतिक मंच बना रही है?
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