सार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 1 अगस्त को महाराष्ट्र के पुणे पहुंचे। कई प्रोजेक्ट्स की लॉन्चिंग से पहले PM मोदी सबसे पहले 'दगडूशेठ हलवाई मंदिर' में दर्शन और पूजा-अर्चना पहुंचे। इस मंदिर का नाम इतनी विचित्र क्यों है, इसके पीछे रोचक कहानी है।

पुणे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 1 अगस्त को महाराष्ट्र के पुणे पहुंचे। कई प्रोजेक्ट्स की लॉन्चिंग से पहले PM मोदी सबसे पहले 'दगडूशेठ हलवाई मंदिर' में दर्शन और पूजा-अर्चना पहुंचे। इस मंदिर का नाम इतनी विचित्र क्यों है, इसके पीछे रोचक कहानी है।

 

पुणे के दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर की कहानी

दगादुशेठ या दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर पुणे में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है कि हर साल एक लाख से अधिक तीर्थयात्री आते हैं। इस मंदिर में महाराष्ट्र की मशहूर हस्तियां और मुख्यमंत्री तक दर्शन करने आते हैं। मंदिर में विराजे मुख्य गणेश मूर्ति का ₹10 मिलियन (US$130,000) का बीमा कराया गया था। 2022 में अपने गणपति के 130 वर्ष पूरे होने पर यहां भव्य आयोजन हुआ था।

कौन थे पुणे के दगडुशेठ हलवाई?

श्रीमंत दगडुशेठ हलवाई और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई पुणे के एक जाने-माने व्यापारी और हलवाई थे। उनकी मूल हलवाई की दुकान आज भी पुणे में दत्त मंदिर के पास 'दगडूशेठ हलवाई स्वीट्स' के नाम से मौजूद है।

बताया जाता है कि 1800 के दशक के आखिर में प्लेग महामारी में दगडुशेठ हलवाई के इकलौते बेटे की मौत हो गई थी। तब एक ऋषि ने उन्हें पुणे में एक गणेश मंदिर बनाने की सलाह दी थी। दगडूशेठ ने अपने भतीजे गोविंदशेठ को गोद लिया था, जो उनकी मृत्यु के समय 9 वर्ष का था।

कौन थे पुणे के गोविंदशेठ हलवाई?

गोविंदशेठ ने पहली गणेश मूर्ति के स्थान पर एक नई मूर्ति स्थापित की। पहली मूर्ति अभी भी एकरा मारुति चौक पर मौजूद है। अब लक्ष्मीबाई दगडूशेठ हलवाई संस्थान दत्त मंदिर ट्रस्ट के नाम से जाना जाता है। गोविंदशेठ की 1943 में मृत्यु हो गई।

गोविंदशेठ के बेटे दत्तात्रेय गोविंदशेठ हलवाई ने दूसरी गणेश मूर्ति के स्थान पर तीसरी गणेश मूर्ति की स्थापना की थी। नवसाचा गणपति के नाम से मशहूर यह मूर्ति आज भी दगडूशेठ मंदिर में मौजूद है।

पीएम मोदी का पुणे दौरा, क्यों खास है?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 1 अगस्त को महाराष्ट्र के पुणे के दौरे पर रहे। प्रधानमंत्री सुबह लगभग 11 बजे दगडूशेठ मंदिर में दर्शन और पूजा-अर्चना पहुंचे। लोकमान्य तिलक की विरासत का सम्मान करने के लिए 1983 में तिलक स्मारक मंदिर ट्रस्ट द्वारा इस पुरस्कार का गठन किया गया था। यह पुरस्कार उन लोगों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए काम किया है और जिनके योगदान को केवल उल्लेखनीय और असाधारण के रूप में देखा जा सकता है। यह प्रत्‍येक वर्ष 1 अगस्त को लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि पर प्रदान किया जाता है।

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