देहरादून एक्सप्रेस में एक गर्भवती महिला को अचानक प्रसव पीड़ा हुई और अस्पताल दूर था। ऐसे में पति ने हिम्मत जुटाकर चलती ट्रेन में सुरक्षित डिलीवरी कराई। यात्रियों की मदद, पर्दा बनाकर प्रसव और नवजात की खुशी ने मानवीयता की मिसाल पेश की।
किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक साधारण ट्रेन यात्रा अचानक जिंदगी और मौत की लड़ाई में बदल जाएगी। देहरादून एक्सप्रेस के एक डिब्बे में रविवार को ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसे वहां मौजूद यात्री शायद जीवन भर याद रखेंगे। तेज लेबर पेन से तड़पती एक गर्भवती महिला, घबराए पर दृढ़संकल्प पति, और बीच में चलती ट्रेन की तेज रफ्तार जो किसी अस्पताल से कई किलोमीटर दूर थी।
लेकिन उसी पल एक साधारण युवक अपनी दादी की सीख को हिम्मत में बदलकर वो कर गया जो कई बार अनुभवी डॉक्टर भी करने से घबराते हैं। चलती ट्रेन में उसने अपनी पत्नी की सुरक्षित डिलीवरी कराकर दो जिंदगियां बचा लीं।
चलती ट्रेन में शुरू हुई असली परीक्षा
जालंधर से बिहार लौट रहे मुकेश और उसका परिवार देहरादून एक्सप्रेस में सफर कर रहा था। यात्रा के शुरुआती घंटे बिल्कुल सामान्य थे। लेकिन अचानक पत्नी को असहनीय प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। स्थिति मिनट दर मिनट बिगड़ती जा रही थी। अगले स्टेशन तक इंतजार करना जोखिम भरा था। ट्रेन की रफ्तार तेज थी, और अस्पताल मीलों दूर। ऐसे में डिब्बे में बेचैनी और घबराहट साफ दिखाई दे रही थी।
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दादी की सीख बनी ‘जीवन मंत्र’
घबराहट के बीच मुकेश को अपनी दादी की बातें याद आईं, जो प्रसव के समय घर में अपनाई जाने वाली सावधानियों और तरीकों को समझाया करती थीं। वह सीख इस मुश्किल घड़ी में उसकी ढाल बन गई। उसने खुद को संभाला और स्थिति पर नियंत्रण करने की ठानी।
यात्रियों ने दिया साथ, चादरों से बनाई गई दीवार
मुकेश ने पहले डिब्बे के सभी पुरुष यात्रियों से बाहर जाने का अनुरोध किया। महिलाएं मदद के लिए आगे आईं। चादरों को खींचकर तुरंत एक अस्थायी पर्दा बनाया गया, ताकि महिला की गोपनीयता बनी रहे। डिब्बे में कुछ ही मिनटों में एक ऐसा माहौल बन गया, जिसने इंसानियत की असली तस्वीर दिखा दी।
और फिर… चलती ट्रेन में जन्मी एक नई जिंदगी
मुकेश ने हिम्मत नहीं खोई। दर्द से कराहती पत्नी के पास घुटनों के बल बैठकर उसने पूरी सावधानी बरतते हुए प्रसव कराया। कुछ ही पल में नवजात की रोने की आवाज पूरे डिब्बे की हवा में खुशी घोल गई। यात्रियों ने राहत की सांस ली, महिला कमजोर जरूर थी, लेकिन सुरक्षित थी। बच्चा स्वस्थ था। ट्रेन जैसे ही अगले स्टेशन पर रुकी, रेलवे स्टाफ और मेडिकल टीम पहले से तैयार खड़ी थी। महिला और नवजात को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने दोनों को पूरी तरह सुरक्षित घोषित किया।
महिला की मां पाटल देवी ने भावुक होकर कहा कि यह बच्चा ईश्वर की देन है। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "हम चाहते हैं कि यह बच्चा बड़ा होकर देश की रक्षा करे, सेना में जाए। जिस तरह इसकी मां और इसकी जान ट्रेन में बची, यह किसी चमत्कार से कम नहीं।”
मुकेश के साहस की चर्चा पूरे क्षेत्र में
जो काम किसी डॉक्टर के लिए चुनौती हो सकता है, उसे मुकेश ने बिना घबराहट, बिना प्रशिक्षण और बिना साधनों के कर दिखाया। स्थानीय लोग और यात्री मुकेश की हिम्मत को सलाम कर रहे हैं।
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