Jaisalmer News: 

Jaisalmer News: राजस्थान के सीमावर्ती जैसलमेर जिले में एक बार फिर ऐतिहासिक धरोहरों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। पोकरण से बीजेपी विधायक महंत प्रतापपुरी ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर अपने क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने आरोप लगाया कि असामाजिक तत्व लगातार छतरियों के निर्माण में बाधा डाल रहे हैं, और समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो जैसलमेर का हाल भी कश्मीर जैसा हो सकता है।

1828 में हुआ था बीकानेर-जैसलमेर युद्ध

1828 के युद्ध की स्मृति में बनी छतरियों पर विवाद यह विवाद बासनपीर गांव की ऐतिहासिक छतरियों को लेकर है, जो 1828 में बीकानेर-जैसलमेर युद्ध में शहीद हुए वीर रामचंद्र सोढ़ा और हदूद पालीवाल की स्मृति में बनी हैं। इनका निर्माण कार्य जैसे ही दोबारा शुरू हुआ, असामाजिक तत्वों द्वारा पत्थरबाजी की गई, जिसमें कई लोग घायल हो गए। इनमें पुलिसकर्मी नरपत सिंह भी शामिल हैं। साथ ही, गाड़ियों में तोड़फोड़ की घटनाएं भी सामने आई हैं।

2019 से चल रहा है जैसलमेर का ये विवाद

प्रशासन ने पहले भी रोका था निर्माण यह विवाद कोई नया नहीं है। 2019 में एक शिक्षक द्वारा लोगों को उकसाकर छतरियां तुड़वाई गई थीं, जिसके बाद झुंझार धरोहर बचाओ संघर्ष समिति का गठन हुआ और आंदोलन छेड़ दिया गया। कुछ गिरफ्तारियां भी हुईं, लेकिन निर्माण कार्य बार-बार अटकता रहा। 2021 में प्रशासनिक सहमति के बाद काम शुरू हुआ, पर दो दिन में ही तनाव के माहौल के चलते फिर से निर्माण रुकवाया गया। समिति के सदस्य गणपत सिंह का आरोप है कि पूर्ववर्ती सरकार के दबाव में प्रशासन ने कार्य रोका, जो न्यायसंगत नहीं था।

जानिए क्या है जैसलमेर विधायक की मांग

विधायक की मांग - निर्माण को मिले पुलिस सुरक्षा विधायक महंत प्रतापपुरी ने अपने पत्र में स्पष्ट कहा है कि ये छतरियां सिर्फ धर्म या समाज की नहीं, हमारी सैन्य परंपरा और वीरगाथा की धरोहर हैं। उन्होंने सीएम से मांग की है कि पुलिस सुरक्षा प्रदान कर निर्माण कार्य को निर्बाध रूप से पूरा कराया जाए। कब्जे और पलायन का डर प्रतापपुरी ने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया है कि जिस गांव में ये छतरियां हैं, वह पालीवाल ब्राह्मणों के पलायन के लिए पहले ही जाना जाता है और अब कब्जों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो आने वाले समय में गंभीर संकट का रूप ले सकती है।

नाथ परंपरा से जुड़े विधायक महंत प्रतापपुरी का यह पत्र केवल निर्माण की मांग नहीं, बल्कि एक चेतावनी है – अगर समय रहते प्रशासन सख्ती नहीं दिखाता, तो ऐतिहासिक जैसलमेर की पहचान ही खतरे में पड़ सकती है।