सार
हिंदू धर्म में गुरू को भगवान का दर्जा दिया गया है। क्योंकि वह हमें अंधकार से प्रकाश के लिए ले जाते हैं। इसलिए शिष्य ऐसे गुरुओं के लिए आज 3 जुलाई को गुरु पूर्णिमा पर्व मनाते हैं। इस मौके पर जानिए चित्तौड़गढ़ के गुरुकुल की कहानी।
चितौड़गढ़ ( राजस्थान). आपने फिल्मों में या फिर पुरानी देव नाटकों में गुरुकुल तो जरूर देखा होगा। जिसमें रहकर शिष्य पढ़ाई करते हैं। इतने अनुशासित माहौल को देखकर मन करता है कि क्यों ना हम भी वही दाखिला ले और अनुशासित होकर हर एक वह ज्ञान ले जो हमारे लिए जरूरी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजस्थान में भी एक ऐसा ही गुरुकुल विद्यालय है। इस गुरुकुल विद्यालय में पढ़ चुके कई शिष्य सरकारी नौकरी लग चुके हैं। जिनमें कई जज तो कई आईएएस अधिकारी है। इस गुरुकुल की सबसे खास बात यह है कि यहां जो बच्चे पहले शिष्य होते हैं बाद में वही टीचर होते हैं।
इस गुरुकुल का सपना महर्षि दयानंद सरस्वती देखा था
यह गुरुकुल राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। जिसका नाम है श्री गुरुकुल। करीब 90 साल पहले इस गुरुकुल की शुरुआत हुई। जिसमें हर साल करीब 35 से 50 बच्चे पास आउट होते हैं। इस गुरुकुल में अब तक करीब 4 हजार से ज्यादा शिष्य पढ़ चुके हैं। आपको बता दें कि इस गुरुकुल का सपना महर्षि दयानंद सरस्वती का ही था। जिन्होंने अपने कालज्यी ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की रचना के बाद मेवाड़ के महाराजा सज्जन सिंह राणा के आग्रह पर 1883 में मेवाड़ में कदम रखा और फिर चित्तौड़ आए। यहीं आकर उन्होंने गुरुकुल खोलने की इच्छा जाहिर की। हालांकि यहां से जोधपुर जाने के बाद उनका निधन हो गया। लेकिन उनके शिष्यों ने यह सपना पूरा किया।
इस गुरुकुल से पढ़कर बने अमेरिका में प्रोफेसर
वैसे तो इस गुरुकुल में पढ़े-लिखे कई शिष्य हैं। लेकिन यहां के पढ़े हुए लक्ष्मी नारायण पांडे जो अब तक 8 बार सांसद रह चुके हैं। इतना ही नहीं शिष्य सत्यानंद वेदवागिश संस्कृत के बड़े जानकार है। जो वर्तमान में अमेरिका में प्रोफेसर है। इसके अलावा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के प्रभारी रहे प्रकाश चंद,बीबीसी लंदन के शंकर भारती, जस्टिस राजेंद्र शर्मा सहित अन्य कई इस गुरुकुल के शिष्य रह चुके हैं।
राजस्थान के इस गुरुकुल में आज भी पुरानी परंपराएं
भले ही आज के युग में एक तरफ जहां स्टूडेंट्स और उनके परिजनों को लुभाने के लिए स्कूलों की ओर से तरह-तरह की सुविधाएं दी जा रही है लेकिन राजस्थान के इस गुरुकुल में आज भी सब कुछ पुरानी परंपराओं के हिसाब से ही चल रहा है यहां ज्यादातर वही स्टूडेंट्स आते हैं जिन्हें वेद का ज्ञान लेना हो।