Jhalawar School Tragedy: झालावाड़ हादसे में घायल बच्चे हौसले की मिसाल बने—अस्पताल में इलाज के दौरान भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। बेड बने क्लासरूम, प्लास्टर चढ़े हाथों में किताबें, प्रशासन ने पढ़ाई व मानसिक काउंसलिंग की जिम्मेदारी उठाई।
Jhalawar School Accident : कुछ दिन पहले झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव के सरकारी स्कूल में हुई छत गिरने की दुर्घटना ने पूरे राजस्थान को हिला दिया था। मासूम बच्चे जो केवल सपनों के साथ स्कूल जा रहे थे, अचानक हादसे का शिकार हो गए। कई बच्चे घायल हो गए और उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। लेकिन अब इस हादसे के कुछ दिन बाद जब इन बच्चों की ताज़ा तस्वीरें और वीडियो सामने आए, तो हर किसी की आंखें नम हो गईं। इन मासूमों ने दर्द के बीच भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। अस्पताल के बेड अब क्लासरूम बन चुके हैं। प्लास्टर चढ़े हाथों में किताबें हैं, पैरों में पट्टियां हैं लेकिन होठों पर मुस्कान भी लौट आई है।
बच्चों के इलाज के साथ-साथ पढ़ाई भी हो रही
जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ की निगरानी में प्रशासन ने बच्चों के इलाज के साथ-साथ उनकी पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य का भी पूरा ख्याल रखा है। अस्पताल में न केवल किताबें और कॉपियां दी गईं, बल्कि शिक्षकों की नियमित उपस्थिति भी सुनिश्चित की गई है। बच्चों की काउंसलिंग की जा रही है ताकि वे इस हादसे के मानसिक आघात से बाहर निकल सकें। विशेषज्ञों की टीम यह सुनिश्चित कर रही है कि डर उनके भीतर घर न कर जाए।
‘हौसले बुलंद हों तो तकलीफ हार मान लेती है’
यह उदाहरण सिर्फ प्रशासनिक सजगता नहीं, बल्कि संकट में उम्मीद की लौ भी है। जब एक बच्चा प्लास्टर चढ़े हाथ से हिंदी की किताब पढ़ता नजर आता है, तो यह एक संदेश बन जाता । “हौसले बुलंद हों, तो तकलीफ भी हार मान जाती है।” प्रशासन, शिक्षकों और चिकित्सा कर्मियों की यह संयुक्त कोशिश न केवल सराहनीय है, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा है जो कठिनाई में हार मान लेते हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी बच्चे जल्द ही पूरी तरह स्वस्थ हों और अपने सपनों की उड़ान फिर से भरें।
