सार

बीजेपी ने राजस्थान में जिस तरह से जो प्रचंड जीत हासलि की उससे कई पार्टियों के नेताओं का राजनीतिक करियर शुरू होने से बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी हनुमान बेनीवाल ने 72 को टिकट दिया था। लेकिन वो खुद ही सीट बचा पाए।

जयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद अभी भाजपा सरकार बनाने की तैयारी में है। इस बार राजस्थान में तीसरे मोर्चे का जादू नहीं चल पाया है। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल और उनकी पार्टी की। जो इस बार राजस्थान में आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही थी। हनुमान बेनीवाल ने इस बार पिछली बार से भी ज्यादा नेताओं को टिकट दिया था। इस बार उन्होंने 73 विधानसभा सीट से अपने प्रत्याशी उतारे थे।

पिछली बार से हालत है बेकार

हनुमान बेनीवाल ने राजस्थान की जनता को साधने के लिए अलग-अलग जतन किए। जितने कार्यक्रम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भाजपा द्वारा आयोजित नहीं करवाए गए उससे ज्यादा विधानसभा क्षेत्र हनुमान बेनीवाल ने कवर किए लेकिन पार्टी की हालात पिछली बार से भी ज्यादा बेकार है। इस बार केवल हनुमान बेनीवाल खींवसर विधानसभा से चुनाव जीत पाए हैं। जबकि पिछले साल इन्होंने जोधपुर के भोपालगढ़ और नागौर की मेड़ता सीट पर जीत हासिल की थी।

क्या रहे दिग्गज नेता के हार के बड़े कारण

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की छवि अब जाट नेता की बन चुकी है जिसके चलते अन्य कोई भी काम पार्टी के साथ में नहीं आना चाहती। वही राजस्थान में हनुमान बेनीवाल ने गठबंधन तो किया लेकिन उसे पार्टी के साथ किया जिसका राजस्थान में कोई खास प्रभाव नहीं है। इसके साथ ही पार्टी के पास अनुभवी नेता की कमी और कोई दिग्गज नेता नहीं होना इनकी हार का सबसे बड़ा कारण है।

हार के बाद भी बेनीवाल की लोकप्रियता बरकरार

हालांकि हनुमान बेनीवाल की लोकप्रियता आज भी बरकरार है लेकिन वह केवल नागौर क्षेत्र में, इसके अलावा अन्य क्षेत्र की जनता अब उन्हें स्वीकार नहीं करती है। हालांकि लोकसभा चुनाव में इनकी लोकप्रियता बढ़ जाती है।