सार

कोटा में कोचिंग छात्रों की आत्महत्याओं के पीछे के कारणों पर एक नज़र। पढ़ाई का दबाव, पारिवारिक उम्मीदें, और सामाजिक जीवन की चुनौतियाँ, जानिए क्या है इन घटनाओं की असली वजह।

कोटा. कोचिंग फैक्ट्री कोटा का काम मंदा पडता जा रहा है। पिछले 3 साल में इतनी गिरावट आई है कि कोचिंगे बंद हो रही है । हॉस्टल खाली हो रहे हैं । वजह है लगातार होने वाली मौतें....। देश के कई राज्यों से डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना लेकर आने वाले छात्र किन समस्याओं से जूझते हैं इसके बारे में प्रोफेसर मनोज मुद्गल ने कई महत्वपूर्ण बिंदु बताए हैं । पिछले साल उन्होंने करीब 1000 छात्रों से बातचीत की थी और उसके बाद यह निष्कर्ष निकाला गया था ।

कोटा में छात्रों का सुसाइड का पहला कारण

प्रोफेसर मनोज का कहना है सबसे बड़ा तनाव पढ़ाई का है । स्कूल के साथ-साथ कोचिंग का काम इतना प्रेशर डालता है अगर बच्चे को संभाल नहीं जाए तो वह तनाव में गिरता चला जाता है। बच्चे तनाव में होने वाले इशारे देते हैं लेकिन उन्हें समझाने के लिए पेरेंट्स नहीं होते हैं ।

कोटा में छात्रों की सुसाइड की दूसरी वजह

दूसरा सबसे बड़ा कारण खुद का शरीर और दिमाग , अधिकतर बच्चे 15 से 18 की उम्र में कोचिंग शुरु कर देते हैं। इन्हीं उम्र में हार्मोनल चेंज होते हैं । बड़ा करने की सोच में यह भूल जाते हैं कि हर बड़े की शुरुआत छोटे से ही होती है । यह तनाव झेल नहीं पाते और खुद को कोसने लगते हैं ।

कोटा में छात्रों के मरने का तीसरा कारण

परिवार या दोस्त भी तनाव का कारण बन सकते हैं। परिवार यह चाहता है उनका बच्चा पहले ही सेशन में डॉक्टर या इंजीनियर के लिए सिलेक्ट हो जाए। उसे फिर से परीक्षाएं न देनी पड़े । जिससे खर्च भी बचे और बच्चे का करियर भी सेट हो जाए । दोस्त तनाव का दूसरा कारण इसलिए है क्योंकि कम उम्र में जहां पढ़ाई का टेंशन है वहीं कई बच्चे लव अफेयर में पढ़ते हैं और खुद का नुकसान कर बैठते हैं ।

कोटा में छात्रों की सुसाइड की चौथी वजह

तनाव का चौथा सबसे बड़ा कारण सोशल लाइफ है । जो बच्चे आर्थिक स्थिति से कमजोर हैं वह उन बच्चों की तरह महंगे मोबाइल या महंगे कपड़े नहीं खरीद पाए जो कई अमीर बच्चे कोटा जाकर खरीदने हैं । कई के पास खुद की पर्सनल कर तक होती है । यह जलन कभी-कभी मौत का कारण बनती है ।

छात्रों का सुसाइड करने का यह 5वां कारण

एक महत्वपूर्ण कारण और है जिसके लिए कोटा बदनाम है । वह है नशा। कई बार बच्चे पढ़ाई का तनाव दूर करने के लिए सिगरेट से होते हुए पाउडर के नशे तक पहुंचाते हैं और फिर वापस आना मुश्किल हो जाता है ।

टीचर मशीन की तरह पढ़ाते और…

प्रोफेसर मनोज मुद्गल का कहना है कि बच्चों को तनाव होना कोई नई बात नहीं है । लेकिन उसको कॉन्फिडेंस में लेकर मजबूत करना महत्वपूर्ण है । अधिकतर कोचिंग मशीन की तरह काम करते हैं। टीचर पढ़ाने आते हैं । अपना लेक्चर पूरा करने के बाद चले जाते हैं। बच्चों से कोई मतलब नहीं होता है। यह सिस्टम सरकार की दखल के बाद ही सुधर सकता है और इसके सुधार के लिए प्रयास शुरू किया जा चुके हैं ।

कोटा में करीब 700 से ज्यादा कोचिंग

उल्लेखनीय है कि कोटा में करीब 700 से ज्यादा छोटी और बड़ी कोचिंग है। वहां पर हर साल पूरे देश से करीब एक लाख से डेढ़ लाख बच्चे डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना लेकर आते हैं । उनमें से कुछ प्रतिशत ही सपना पूरा कर पाते हैं।

 

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