sawan 2025 : राजस्थान का परिधान रंग-बिरंगी साड़ी लहरिया अब एक ग्लोबल फैशन बन गया है। बॉलीवुड से लेकर विदेशों और बिजनेस वुमन तक इसको वेयर किया जा रहा है। सवान में इसका विशेष महत्व होता है।
Sawan 2025: राजस्थान के परिधान संस्कृति और रंगों की बात हो और लहरिया का ज़िक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता है। यहां का ‘लहरिया’ न केवल पारंपरिक परिधान है बल्कि, सावन के त्योहारों में महिलाओं की पहली पसंद भी है। अब तो यह एक ग्लोबल फैशन स्टेटमेंट बन चुका है। इतना ही नहीं बॉलीवुड से लेकर विदेशों और बिजनेस वुमन तक इसको वेयर करती हैं।
क्या है लहरिया…कैसे पड़ा ये नाम
लहरिया का नाम ‘लहर’ यानी लहरों से पड़ा है, क्योंकि इसकी डिजाइन में लहरदार पट्टियाँ होती हैं जो आंखों को भाती हैं। पारंपरिक रूप से ये कपड़े प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते थे, लेकिन अब डिज़ाइनर्स इसमें सिल्क, शिफॉन और जॉर्जेट जैसे फैब्रिक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।
- लहरिया राजस्थान की पारंपरिक टाई-डाई तकनीक से बनी रंग-बिरंगी साड़ी या दुपट्टा होता है।
- लहरिया की कीमत ₹500 से शुरू होकर डिजाइन, फैब्रिक और कढ़ाई के अनुसार ₹5000 या उससे ज्यादा तक जाती है।
- लहरिया आमतौर पर कॉटन, सिल्क, चंदेरी और जॉर्जेट जैसे कपड़ों पर तैयार की जाती है।
- सावन और तीज के मौके पर इसे पहनना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह हरियाली, बारिश और उमंग का प्रतीक है।
- राजस्थान में इसे सावन की रानी भी कहा जाता है, जो महिलाओं की श्रृंगार और सांस्कृतिक पहचान है।
- लहरिया में रंगों की लहरें सावन की बूंदों और महिलाओं के मन की तरंगों को दर्शाती हैं। इसकी सबसे ज्यादा बिक्री तीज, रक्षाबंधन और गणगौर जैसे त्योहारों पर होती है।
- जयपुर का बापू बाजार, जौहरी बाजार, जोधपुर का घंटाघर मार्केट, और उदयपुर का हाथीपोल लहरिया के लिए प्रसिद्ध हैं।
- आजकल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स जैसे Amazon, Meesho, और Rajasthan Handloom Sites पर भी लहरिया आसानी से मिलती है।
- लहरिया केवल एक परिधान नहीं, बल्कि राजस्थान की संस्कृति और सौंदर्य का जीवंत प्रतीक है।
राजस्थान सरकार भी लहरिया को दे रही बढ़ावा
बता दें कि राजस्थान सरकार भी लहरिया परिधान को बढ़ावा दे रही है। उसे इंटरनेशनल ब्रांड बनाना चाहती है। इतना ही नहीं विशेष मेले और फेयर आयोजित कर रही है। लघु उद्योग विभाग द्वारा जयपुर और जोधपुर में स्थानीय कारीगरों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाने की पहल की जा रही है, ताकि उनकी कला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार मिल सके।
