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राजस्थान में गुलाल तैयार करने का यह आदिवासी तरीका आपको हैरान कर देगा, महिलाएं बना रही एक्सपोर्ट क्वालिटी रंग
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होली रंगों का त्यौहार है जहां लोग पूरी तरह रंगों पर सने रहते है। पर शरीर पर पड़ने वाला ये केमिकल वाला रंग काफी नुकसान पहुंचाता है। इसका ही समाधान राजस्थान में किया जा रहा है।
यहां राजस्थान के जयपुर में गोबर से गुलाल बनाया जा रहा है। नाम दिया गया है गोमय गुलाल....। क्वालिटी भी शानदार और पैकिंग भी जानदार....। फिलहाल ट्रायल फेस में होने के चलते लोगों को फ्री सेंपल के लिए दी जा रहे है।
इस गुलाल के बाद अब उदयपुर जिले में बन रही एक्सपोर्ट क्वालिटी की गुलाल की बात करते हैं। गुलाल ये भी शानदार और पैकिंग में भी जानदार....। जिस तकनीक से कभी राजा महाराजाओं के होली खेलने के लिए तैयार किए जाते थे रंग वहीं पद्धति से अब आम लोगों के लिए भी नेचुरल गुलाल तैयार किए जा रहे है।
दरअसल ये गुलाल बनवा रहे हैं जंगल वाले अफसर....। राजस्थान में वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी इस गुलाल को तैयार करवा रहे हैं आदिवासी महिलाओं से। फूलों, सब्जियों और पत्तों के रंग से बन रहे इन कलर की इतनी डिमांड है कि माल कई राज्यों में एक्सपोर्ट किया जा रहा हैं।
उदयपुर में वन विभाग की टीम उदयपुर और भीलवाड़ा में आदिवासी महिलाओं से ये माल तैयार करवा रहे हैं आदिवासी महिलाएं घने जंगलों में जाकर पलाश, हजारा और अन्य रंग बिरंगे फूल चुनती हैं और उसके बाद उसे प्रोसेस में लिया जाता है।
उसमें हल्दी, पालक , मेंहदी के पत्ते मिलाए जाते हैं और फिर उन्हें अच्छी तरह धोया जाता है। उसके बाद धूप में सुखाकर फिर से एक बार धोया जाता है। इसके बाद शुरू होती है आगे की प्रोसेस।
बारा सुखाने के बाद इन्हें पीसकर पानी में मिलाया जाता है और कई घंटों तक उबाला जाता है। फिर मकई का आटा मिलाकर पांच से सात दिनों के लिए सुखाया जाता है। उसके बाद पैकिंग बनाई जाती है।
उदयपुर वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राजस्थान के कई शहरों के अलावा दिल्ली में भी माल एक्सपोर्ट किया जाता हैं। सबसे अच्छी बात ये है कि कलर खेलते हुए अगर यह मुंह में भी चला जाता है तो भी किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता। यही कारण है कि इस गुलाल की भारी मांग है।