सार
जयपुर. देशभर में आज जन्माष्टमी के मौके पर भगवान कृष्ण के अलग-अलग मंदिर की कहानी चर्चा में है। लेकिन क्या आप जानते हैं राजस्थान में भगवान श्री कृष्ण के तीन अलग-अलग मंदिर हैं। तीनों मिलकर भगवान कृष्ण का स्वरूप बनाते हैं। यह तीनों मंदिर जयपुर के गोविंददेव, गोपीनाथ और करौली के मदन मोहन जी का मंदिर है। एक मान्यता है कि सूर्योदय से सूर्यास्त तक इन तीनों के दर्शन किए जाए तो मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
किसी मंदिर से श्रीकृष्ण के बाहु तो किसी से मिलते चरण
मान्यता है कि करौली में विराजमान मदन मोहन के विग्रह के चरण भगवान श्री कृष्ण से मिलते हैं और जयपुर के गोपीनाथ जी विग्रह के वक्ष स्थल और बाहु भगवान के स्वरूप से मिलते हैं और जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर का विग्रह तो हुबहू भगवान श्री कृष्ण के मुख मंडल और आंखों से मिलता है।
श्रीकृष्ण के इन मंदिरों में आने से होती हर मनोकामना पूरी
जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर के सेवादार अमोल बताते हैं कि इन तीनों के विग्रह के दर्शन के लिए रोजाना लाखों वक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि तीनों के विग्रह के दर्शन कर लेते हैं तो साक्षात कृष्ण के दर्शन होते हैं और भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। पौराणिक शास्त्रों में तीनों ही मंदिरों का विग्रह करीब 5000 साल पुराना बताया है।
मुस्लिम शासक महमूद गजनबी के आतंक की कहानी का है कनेक्शन
एक मान्यता यह भी है कि जब दसवीं शताब्दी में मुस्लिम शासक महमूद गजनबी के आक्रमण बढ़े तो भगवान कृष्ण ने अपने इन तीनों विग्रह को धरती में छुपा कर उस जगह संकेत चिन्ह अंकित कर दिए। लेकिन कई सालों तक मुस्लिम शासन रहने के कारण विग्रह के बारे में किसी को मालूम ही नहीं हुआ। 16वीं शताब्दी में चैतन्य महाप्रभु ने अपने दो शिष्यों रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी को भेजा इसके बाद यह विग्रह जनता के सामने आए।
तीनों ही मंदिरों में लाखों भक्त आते दर्शन करने
इसके बाद धीरे-धीरे तत्कालीन राजाओं और अन्य सेवकों ने इनके बारे में जाना तो धीरे-धीरे विग्रह का प्रचार हुआ और मंदिरों का निर्माण करवाया गया। आज तीनों ही मंदिरों में लाखों की तादाद में भक्ति दर्शन करने के लिए आएंगे। इनमें सबसे ज्यादा भीड़ जयपुर के गोविंद देव मंदिर में होने वाली है।