उत्तर प्रदेश में, चार साल के इंतजार के बाद पैदा हुए 23 दिन के बच्चे की नींद में दम घुटने से मौत हो गई. वह अपने माता-पिता के बीच सो रहा था. सुबह जब बच्चे में कोई हरकत नहीं दिखी, तो उसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी जान नहीं बचाई जा सकी.
अमरोहा: उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के हसनपुर थाना क्षेत्र के सिहाली जागीर से एक दुखद घटना सामने आई है. सालों की दुआओं, इलाज और लंबे इंतजार के बाद पैदा हुए बच्चे की 23वें दिन ही मौत हो गई. बच्चा रात में अपने माता-पिता के साथ सो रहा था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, नींद में माता-पिता के बच्चे के ऊपर आने से उसका दम घुट गया और उसकी मौत हो गई.
नींद में दर्दनाक हादसा
सद्दाम अब्बासी और अस्मा की शादी चार साल पहले हुई थी. शादी के बाद से ही वे बच्चे के लिए कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें चार साल तक इलाज और दुआओं के साथ इंतजार करना पड़ा. लंबे इंतजार के बाद पैदा हुए उनके बेटे सुफियान की 23वें दिन ही मौत हो गई. अगली सुबह (8 दिसंबर को) जब मां बच्चे को दूध पिलाने के लिए उठी, तो देखा कि उसमें कोई हरकत नहीं हो रही है. उन्होंने बच्चे को जगाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं उठा. उसे तुरंत गजरौला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने बच्चे को मृत घोषित कर दिया.
मौत के बाद हुई कहासुनी
बच्चे की मौत से माता-पिता पूरी तरह टूट गए. इसके बाद दोनों बच्चे की मौत के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराने लगे. इस वजह से अस्पताल में ही दोनों के बीच झगड़ा हो गया. न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के मुताबिक, रिश्तेदार भी उन्हें शांत नहीं करा पाए. वहीं, बच्चे की जांच करने वाले प्रभारी डॉक्टर योगेंद्र सिंह ने बताया कि दंपति बिना पुलिस में शिकायत दर्ज कराए घर लौट गए. डॉक्टर ने भी पुष्टि की कि बच्चे की मौत नींद में गलती से दम घुटने से हुई है. माना जा रहा है कि सर्दियों में गर्मी के लिए माता-पिता ने बच्चे को बीच में सुलाकर कंबल ओढ़ा दिया था, जो शायद इस हादसे की वजह बना.
सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS)
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पहले भी सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (SIDS) के बारे में चेतावनी दी है. यह आमतौर पर एक साल से कम उम्र के बच्चे की नींद में होने वाली ऐसी मौत है, जिसका कोई स्पष्ट कारण नहीं होता. ऐसे मामले ज्यादातर एक से चार महीने की उम्र के बच्चों में देखे जाते हैं. खासकर उत्तर भारत में सर्दियों के दौरान ऐसे मामले बढ़ जाते हैं. डॉक्टरों का यह भी कहना है कि SIDS से मरने वाले बच्चों पर कोई बाहरी चोट के निशान नहीं होते, जिससे मौत का सही कारण पता लगाना मुश्किल हो जाता है.
