सार
घाघरा और कोसी नदी पर बने एल्गिन ब्रिज के निर्माण की कहानी काफी रोचक है। अंग्रेजों ने इस पुल को 127 साल पहले बनाया था। जानें पुल के इतिहास से जुड़े रोचक तथ्य।
उत्तर प्रदेश। पुर्वोत्तर रेलवे में उत्तर प्रदेश में बने ऐतिहासिक एल्गिन ब्रिज निर्माण का अपना ऐतिहासिक इतिहास है। इस पुल के निर्माण में अंग्रेजों की कारीगरी का नमूना भी देखने को मिलता है। तकरीबन 127 साल पहले अंग्रेजों ने दो नदियों पर रेल ब्रिज बनाने के लिए पहली बार एक अद्भुत प्रयोग किया गया था। घाघरा और कोसी नदी के बीच दो पुल की जगह एक ही पुल बनाकर अंग्रेजों ने ट्रेन भी दौड़ा दी थी।
रेत पर बनवा दिया था पुल
दो नदियों पर एक पुल बनाने के लिए पहले अंग्रेजों ने रेत पर ही पुल बनवा दिया। इसके बाद नदी की धारा को पांच किलोमीटर पहले मोड़ दिया गया। इस पुल का नाम वायसराय लॉर्ड एल्गिरन के नाम पर रखा गया था। दो साल सर्वे के बाद घाघरा नदी पर 3695 फीट लंबे पुल को तैयार किया गया। इस पुल की लागत 30.75 लाख रुपये आई थी। 61 मीटर लंबाई में 17 गर्डर लगाए गए। 1966-67 में गार्डर को फिर से बदला भी गया था।
इंजीनियरों को 5 किमी पहले मिला एलाइनमेंट
एल्गिन ब्रिज निर्माण के लिए कोसी नदी और घाघरा पर सर्वे के बाद इंजीनियरों को 5 किलोमीटर पहले ब्रिज के लिए एलाइनमेंट समझ में आया। इसके बाद अधिकारियों ने नदी पर यह ऐतिहासिक ब्रिज बनाने का निर्णय लिया।
पुल पर सेना के जवानों का पहरा
एल्गिन ब्रिज बनने के दौरान आजादी के लिए कई राज्यों में अंग्रेदी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह भी हो रहा था। ऐसे में सुरक्षा के लिहाज से पुल पर सेना के जवानों को तैनात किया गया था। देश में अंग्रेजों की सरकार के खिलाफ जगह-जगह विद्रोह शुरू हो गया था। इस ब्रिज को किसी तरह का नुकसान न होने पाए, इसलिए सेना के जवानों की ड्यूटी लगाई जाती थी। ब्रिज के नीचे ब्लॉक हाउस बनाए गए थे।
‘छोटी लाइन’ बुक में ब्रिज का रोचक इतिहास
मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने बताया कि ‘छोटी लाइन’ बुक को एक कॉफी टेबल बुक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इसमें पूर्वोत्तर रेलवे के 150 वर्षों में आए बदलाव की कहानी का वर्णन किया गया है। नए साल पर इस बुक का विमोचन है।