खादी महोत्सव-2025 में इस बार ₹3.20 करोड़ की रिकॉर्ड बिक्री हुई, जो पिछले वर्ष से 42% अधिक है। 160 उद्यमियों और हजारों आगंतुकों ने भाग लिया। खादी, हर्बल उत्पाद, जूट हस्तशिल्प और माटी कला की मांग सबसे अधिक रही।

लखनऊ। गोमतीनगर स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित 10 दिवसीय खादी महोत्सव-2025 में इस बार बिक्री ने नया रिकॉर्ड बनाया। ‘धागे से धरोहर तक’ थीम पर आधारित इस आयोजन में कुल कारोबार ₹3.20 करोड़ तक पहुंचा। यह आंकड़ा पिछले वर्ष हुई ₹2.25 करोड़ की बिक्री से लगभग 42% अधिक है। महोत्सव के अंतिम दिन खरीदारी का उत्साह सबसे ज्यादा देखा गया और देर शाम तक स्टॉलों पर भारी भीड़ उमड़ी रही।

खादी, हर्बल उत्पाद और माटी कला रही ग्राहकों की पहली पसंद

इस बार खादी वस्त्र, हर्बल उत्पाद, जूट हस्तशिल्प और माटी कला वस्तुओं को लोगों ने सबसे ज्यादा खरीदा। आगंतुकों ने बताया कि एक ही स्थान पर पारंपरिक खादी, स्थानीय शिल्प और प्राकृतिक उत्पादों की इतनी विस्तृत रेंज मिलना एक भरोसेमंद और दिलचस्प अनुभव था। महोत्सव में युवाओं, छात्रों और महिलाओं की लगातार उपस्थिति रही, जिसने बिक्री को और भी बढ़ावा दिया।

160 उद्यमियों की सहभागिता, प्रदेशभर के कारीगर पहुंचे

कार्यक्रम में खादी संस्थाओं के 32, ग्रामोद्योग के 120 और माटी कला के 08 स्टॉल सहित कुल 160 उद्यमियों ने हिस्सा लिया। लखनऊ, मुजफ्फरनगर, बाराबंकी, गोरखपुर सहित कई जिलों से आए कारीगरों ने बताया कि इस वर्ष न केवल भीड़ बढ़ी, बल्कि खरीदारी के प्रति उत्साह भी पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक देखने को मिला।

‘युवा ग्राहकों की बढ़ती उपस्थिति’ बनी बड़ी वजह

स्वराज्य आश्रम के प्रेम कुमार, ग्राम सेवा संस्थान के सतेन्द्र कुमार, मुजफ्फरनगर के अब्बास अंसारी, जूट आर्टिज़न्स की अंजलि सिंह, बाराबंकी के प्रेमचन्द्र और रॉयल हनी के प्रो. नितिन सिंह ने बताया कि इस बार युवा ग्राहकों की विशेष उपस्थिति बिक्री में बढ़ोतरी का मुख्य कारण रही। युवाओं की बढ़ती रुचि ने खादी और स्थानीय उत्पादों को नए बाजार अवसर दिए।

खादी महोत्सव में बढ़ती लोकप्रियता और सांस्कृतिक महत्व

महोत्सव में पूरे समय उत्साहपूर्ण माहौल रहा। आगंतुकों ने कहा कि स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए उत्पादों पर भरोसा बढ़ा है और स्वदेशी वस्तुओं की तरफ लोगों का रुझान लगातार बढ़ रहा है। समापन अवसर पर बोर्ड के मुख्य कार्यपालक अधिकारी शिशिर ने उद्यमियों और आयोजन टीम को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि खादी अब सिर्फ परिधान का विकल्प नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिक उपभोक्ता—दोनों की साझा पहचान बन चुकी है।