क्या अवध असम एक्सप्रेस में यात्री सच में 24 घंटे तक खड़े रहे, पानी न पी सके और वॉशरूम भी न जा पाए? वायरल वीडियो ने उजागर किया ट्रेन का डरावना और ओवरक्राउडेड सच-यात्रियों की सुरक्षा खतरे में!

लखनऊ। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसने भारतीय रेलवे की वास्तविक स्थिति को पूरी तरह उजागर कर दिया। वीडियो में दिखाया गया है कि अवध असम एक्सप्रेस के एक कोच में यात्रियों को किस तरह से भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। एक यात्री, जो राजस्थान से आ रहा था, ने कहा कि वह पिछले 24 घंटे से ओवरक्राउडेड ट्रेन में फंसा हुआ है। उसे न तो हिलने-डुलने की जगह मिली और न ही वॉशरूम का इस्तेमाल करने का मौका।

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क्या यात्री सच में 24 घंटे तक खड़े रहे और पानी तक नहीं पी पाए?

वीडियो में यात्री कहता है, "मुझे पानी पीने से डर लगता है।" उसने बताया कि इतनी भीड़ और घुटन के कारण वह पेशाब तक नहीं कर पाया। जब रिपोर्टर ने कहा कि सरकार का दावा है कि यात्री आराम से यात्रा कर रहे हैं, तो उसका जवाब था, "यही तो आराम है।" वीडियो में साफ दिख रहा है कि ट्रेन में कई यात्री खड़े हैं और उनकी असुविधा साफ झलक रही है।

वायरल वीडियो पर नेटिज़न्स की तीखी प्रतिक्रिया

वायरल वीडियो X पर कुछ ही घंटों में 30.7K से ज्यादा व्यूज़ हासिल कर चुका है। नेटिज़न्स ने इसे “बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन” बताया और कहा कि "12,000 'स्पेशल' ट्रेनें, यात्रियों के लिए 0 इज़्ज़त।" कई लोगों ने कहा कि ट्रेन में इतनी भीड़ देखकर उन्हें क्लॉस्ट्रोफोबिया महसूस हुआ। एक यूज़र ने लिखा, "24 घंटे से अपनी जगह से हिला नहीं… इसे हम क्या कहें? सीट अरेस्ट या कुछ और!"

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अवध असम एक्सप्रेस की जानकारी

अवध असम एक्सप्रेस (15909 / 15910) नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे द्वारा चलाई जाती है। यह ट्रेन राजस्थान के बीकानेर लालगढ़ जंक्शन से असम के डिब्रूगढ़ तक जाती है और अपने लंबे रूट और लेट होने के कारण यात्रियों के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण साबित होती है।

क्या यह है भारतीय रेलवे का "सिस्टमिक इश्यू"?

विशेषज्ञों का कहना है कि यह वीडियो रेलवे में ओवरक्राउडिंग और यात्री असुविधा की गंभीर समस्या को उजागर करता है। यात्रियों का कहना है कि ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि वे पानी पीने या वॉशरूम जाने तक के लिए सुरक्षित तरीके से हिल नहीं सकते थे। सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद कई लोग रेलवे प्रशासन से सवाल कर रहे हैं कि क्या यह अब भी "सिस्टमिक इश्यू" है या इसे सुधारने की जरूरत है।