सार
बताया जा रहा है कि मैंगों लेदर से बने लैपटॉप बैग्स और सिंपल बैंग ड्यूरेब्लिटी टेस्ट में पास हो गए हैं। अब वैज्ञानिकों की टीम इसमें कई और बदलाव करने जा रही है, जिससे मैंगो लेदर का इस्तेमाल फुटवियर बनाने में भी किया जा सके।
ट्रेंडिंग डेस्क. सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट (CLRI) ने आम से उपयोग करके लेदर जैसे उत्पाद बनाने की नई तकनीक विकसित की है। सीएलआरआई ने इस तकनीक का लाइसेंस मंगलवार को मुंबई स्थित स्टार्ट-अप आमति ग्रीन प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया है। इस तकनीक में आम के गूदे का इस्तेमाल कर सिंथेटिक चमड़ा तैयार किया जाता है जो एनवायरमेंट फ्रेंडली है।
ये है आम से बने चमड़े की विशेषता
रिपोर्ट्स के मुताबिक आम से बनने वाला लेदर पॉलीयुरेथेन लेदर की तुलना में अधिक तेजी से डीग्रेड होगा। सीएलआरआई के मुख्य वैज्ञानिक पी थानिकैवेलन ने बताया कि आम के गूदे को लिक्विड और पाउडर फॉर्म में बायोपॉलिमर के साथ मिलाया जाता है, जिसके बाद एक साधारण तकनीक से लेदर शीट तैयार की जाती है। इसके अलावा तैयार किए लेदर पर एक अतिरिक्त कोटिंग और कुछ डेकोरेटिव पैटर्न लगाए जाते हैं।
पास हुए मैंगो लेदर से बने आइटम
बताया जा रहा है कि मैंगों लेदर से बने लैपटॉप बैग्स और सिंपल बैंग ड्यूरेब्लिटी टेस्ट में पास हो गए हैं। अब वैज्ञानिकों की टीम इसमें कई और बदलाव करने जा रही है, जिससे मैंगो लेदर का इस्तेमाल फुटवियर बनाने में भी किया जा सके। चीफ साइंटिस्ट ने आगे कहा कि प्राकृतिक लेदर जितनी ताकतवर और टिकाऊ चीज कोई, जब इससे बने मटेरियल्स को लगभग 50 वर्षों बाद बाजार से बाहर कर दिया जाता है, उसके बाद भी इन्हें डीग्रेड होने में बहुत ज्यादा वक्त लगता है। ऐसे में हमने जो चमड़ा बनाया वह एक बायोडीग्रेडेबल चमड़ा है जो एक निश्चित अवधि के बाद डीग्रेड हो जाएगा और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होगा। बता दें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा आम उत्पादक है। यहां 20 मिलियन टन आम प्रति वर्ष होते हैं। इसमें 40% तक आमों को खेतों में ही छोड़ दिया जाता है क्योंकि वो बेचने लायक नहीं होते हैं। ऐसे आमों का उपयोग करके चमड़ा बनाया जा सकता है।
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