सार
नेता जी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) ने वर्ष 1944 में एक रेडियो संदेश के जरिए महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को देश का पिता यानी राष्ट्रपिता (Rastrapita) कह कर संबोधित किया था। उनका यह संबोधन धीरे-धीरे बाकि लोगों तक भी पहुंचा और सभी उन्हें राष्ट्रपिता कहने लगे। इसके बाद आजाद भारत में केंद्र सरकार ने इस संबोधन को मान्यता दे दी।
नई दिल्ली। आजादी की लड़ाई में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का योगदान बेहद महत्वपूर्ण था। वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। हालांकि, यह भी दावा किया जाता है कि अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी से नेताजी के मतभेद रहे, मगर यह कभी मनभेद में नहीं बदला। वे हमेशा गांधी जी को आदर व सम्मान का भाव देते थे। यह उपाधि उन्होंने कुछ मुलाकातों के बाद ही दे दी थी इसके बाद बाकि लोग भी उन्हें राष्ट्रपिता बोलने लगे और इस धीरे-धीरे उन्हें लोग राष्ट्रपिता कहने लगे।
यह नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे, जो तमाम मतभेदों के बावजूद गांधी जी को राष्ट्रपति की उपाधि से नवाजे थे। नेताजी के गांधी जी से मतभेद वर्ष 1938-39 में खुलकर तब सामने आ गए थे, जब नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष बने। तभी उनका मतभेद गांधी जी और कांग्रेस आलाकमान से खुलकर सामने आ गया था। इसके बाद ही नेताजी पार्टी से इस्तीफा दे दिए थे।
भगत सिंह की फांसी मसले पर महात्मा गांधी और कांग्रेस से मतभेद
नेताजी जब जेल में थे तब महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार से बात कर सभी क्रांतिकारियों को रिहा करा दिया। मगर तब ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों को रिहा नहीं किया। सुभाष चंद्र बोस ने भगत सिंह की फांसी रूकवाने की अपने स्तर से काफी कोशिश की, मगर वे भी सफल नहीं हुए। भगत सिंह को फांसी से नहीं बचा पाने की वजह से ही उनमें और महात्मा गांधी में मतभेद हुए और यही मतभेद कांग्रेस पार्टी के आलाकमान के साथ भी हुआ, जिसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। इसी समय नेताजी ने कांग्रेस पार्टी भी छोड़ दी थी।
रेडियो संदेश पर पहली बार कहा था देश का पिता यानी राष्ट्रपिता
इन सबके बावजूद नेताजी सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी का काफी सम्मान करते थे। उन्हें राष्ट्रपिता सबसे पहले नेताजी ने ही बुलाया था। 6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से संदेश प्रसारित किया। इसमें उन्होंने महात्मा गांधी को देश का पिता यानी राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। आजादी के बाद भारत सरकार ने भी उनके इस कथन को मान्यता दे दी थी।
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