सार
कार्तिक मास में छठ पूजा करने वाली महिलाएं अगहन और वैशाख महीने में भी भगवान सूर्य की पूजा करती हैं। मार्गशीर्ष महीने की सप्तमी तिथि और रविवार को उगते हुए सूरज को जल चढ़ाया जाता है और दिनभर व्रत रखकर श्रद्धानुसार जरूरतमंद लोगों को दान दिया जाता है।
उज्जैन. धर्म ग्रंथों में सूर्य पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। सूर्य को प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है यानी वो देवता जिन्हें हम देख सकते हैं। पुराणों में बताया गया है कि अगहन महीने के देवता भगवान विष्णु हैं और सूर्य इन्हीं का ही एक रूप है। इसलिए इन्हें सूर्य नारायण कहा जाता है। शुक्रवार को सप्तमी तिथि थी अब 12 दिसंबर, रविवार होने से इस दिन सूर्य पूजा का महत्व रहेगा।
अदिति के गर्भ से मित्र रूप में प्रकट हुए सूर्य
नारद पुराण में बताया गया है कि कश्यप ऋषि के तेज और अदिति के गर्भ से मित्र नाम के सूर्य प्रकट हुए। जो असल में भगवान विष्णु की दाईं आंख की शक्ति ही थी। इसलिए इस तिथि में शास्त्रोक्त विधि से उनका पूजन करना चाहिए। सूर्य के मित्र रूप की पूजा करके सात ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। फिर उन्हें श्रद्धानुसार दक्षिणा देनी चाहिए। इसके बाद खुद भोजन करें। इस तरह व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है।
जानिए इस तिथि का खास महत्व
- पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि अगहन महीने में सप्तमी और रविवार को सूर्य पूजा का उतना ही फल होता है जितना कार्तिक की छठ पूजा करने से मिलता है।
- मार्गशीर्ष महीने में पवित्र नदी या किसी तीर्थ में स्नान कर के उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। जल चढ़ाते वक्त सूर्य के मित्र स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। यानी ऊँ मित्राय नम: मंत्र बोलते हुए अर्घ्य दिया जाना चाहिए। अगहन महीने में धान की नई फसल के आ जाने से किसान नया धान और अन्न सूर्य देवता को चढ़ाते हैं।
- मार्गशीर्ष के रविवार को सूर्य पूजा के बाद पूरे दिन जरूरतमंद लोगों को श्रद्धानुसार गर्म कपड़े, अन्न, गुड़, तांबे के बर्तन, कंबल, बिस्तर और अन्य जरूरी चीजों का दिन किया जाता है।
- साथ ही इस दिन बिना नमक का व्रत रखा जाता है। यानी दिनभर में किसी भी तरह से नमक नहीं खाया जाता। अगहन महीने में रविवार को पूर्णिमा तिथि होने से इस दिन सूर्य पूजा करने का महत्व और बढ़ जाता है।