सार
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा शहर में मालकड़ा पहाड़ी पर स्थित है देवी बज्रेश्वरी का मंदिर। यह स्थान तंत्र-मंत्र के लिए प्रसिद्ध है।
उज्जैन. मान्यता है कि इस शक्तिपीठ पर मां सती का बायां वक्षस्थल गिरा था। इसलिए इसे स्तनपीठ भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भद्रकाली, एकादशी और वज्रेश्वरी स्वरूपा तीन पिण्डियों की पूजा की जाती है।
यहां स्थापित है अष्टधातु का त्रिशूल
यहां पिण्डी के साथ अष्टधातु का बना एक पुरातन त्रिशूल भी है, जिस पर दस महाविद्याओं के दस यंत्र अंकित हैं। इसी त्रिशूल के अधोभाग पर दुर्गा सप्तशती कवच उत्कीर्ण है। जनश्रुति है कि इस पर चढ़ाए गए जल को गर्भवती स्त्री को पिलाने से शीघ्र प्रसव हो जाता है। इस मंदिर में जालंधर दैत्य का संहार करती देवी को रूद्र मुद्रा में दर्शाती एक पुरातन मूर्ति है।
तीन तरह का लगाया जाता है भोग
बज्रेश्वरी मंदिर में पूजा ब्रह्म मुहूर्त में स्नान व श्रृंगार के साथ की जाती है और पंचमेवा का भोग लगाया जाता है, इसके बाद आरती होती है। दोपहर में देवी को चावल और दाल का भोग लगाया जाता है। शाम को दूध, चने और मिठाई का भोग लगाया जाता है। यहां चैत्र और आश्विन नवरात्रों तथा श्रावण मास में मेलों को मनाने की प्रथा का अनूठा प्रचलन है।
कैसे पहुंचें?
- हिमाचल सड़क परिवहन निगम पड़ोसी राज्यों दिल्ली, हरियाणा और पंजाब से नियमित बसें चलाता है। जो राज्य के प्रमुख शहरों पठानकोट, शिमला, कांगड़ा, सोलन और धर्मशाला शहरों से होकर आती जाती है।
- निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है, जो चंबा से लगभग 120 किलोमीटर दूर है। पठानकोट से चंबा के लिए बस और टैक्सी बहुत आसानी से उपलब्ध हैं।
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