सार

Ashwin Shivratri 2022: धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इसे शिव चतुर्दशी  भी कहते हैं। इस बार आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तिथि 24 सितंबर, शनिवार को है।
 

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान महादेव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। चतुर्दशी को भगवान शिव की प्रिय तिथि माना जाता है। इसलिए प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि (Ashwin Shivratri 2022)  का व्रत भी किया जाता है। इस बार आश्विन मास की चतुर्दशी तिथि 24 सितंबर, शनिवार को है यानी इस दिन मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाएगा। ये श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी तिथि है, इसलिए इसका और भी खास महत्व है।

आश्विन शिवरात्रि के शुभ मुहूर्त (Ashwin Shivratri 2022 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 23 सितंबर, शुक्रवार की रात  02:31 से 24 सितंबर, शनिवार की रात 03:12 तक रहेगी। इस दिन शिव और साध्य नाम के 2 शुभ योग दिन भर रहेंगे। इन शुभ योगों में शिवजी की पूजा करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

मासिक शिवरात्रि की पूजा विधि (Masik Shivratri Puja Vidhi September 2022)
24 सितंबर, शनिवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत और पूजा का संकल्प लें। इसके बाद किसी शिव मंदिर में या घर में किसी साफ स्थान पर शिवजी की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर पूजा की तैयारी करें। सबसे पहले शुद्ध घी का दीपक लगाएं और शिवजी को चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल, धतूरा, भांग, इत्र, फूल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। अंत में शुद्धता पूर्वक बनाया गया भोग लगाएं और आरती करें। पूरे दिन निराहार (जैसा आपने संकल्प लिया हो) रहकर शिवजी का ध्यान करें। 

भगवान शिव की आरती (Shiv ji Ki aarti)
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥  
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। 
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥


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