सार

शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन (2 अक्टूबर) की प्रमुख देवी मां कूष्मांडा हैं। मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कूष्मांडा ने अपने उदर से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कूष्मांडा पड़ा।

उज्जैन. कूष्मांडा देवी की उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।

 

इस विधि से करें देवी कूष्मांडा की पूजा
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता कूष्मांडा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां कूष्मांडा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

 

ध्यान मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

अर्थात: आठ भुजाओं वाली कूष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा रहते हैं। देवी कूष्मांडा का वाहन सिंह है।

 

चौथे दिन क्यों करते हैं देवी कूष्मांडा की पूजा?
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के इस रूप ने अपने उदर यानी पेट से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। लाइफ मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से देखा जाए तो ये ब्रह्मांड ही इच्छाओं का प्रतीक है। जब आप भक्ति के मार्ग पर चलते हैं तो आपके अंदर किसी तरह की कोई इच्छा शेष नहीं होनी चाहिए। नहीं तो भक्ति के मार्ग पर मन भटकता रहा है। ब्रह्मांड यानी अपनी इच्छाओं को बाहर निकाल कर आप भक्ति के मार्ग पर चलते हुए ईश्वर को पा सकते हैं।

 

2 अक्टूबर के शुभ मुहूर्त
सुबह 7.30 से 9 बजे तक- अमृत
सुबह 10.30 से दोपहर 12 तक- शुभ
दोपहर 3 से 4.30 तक- चर
शाम 4.30 से 6 तक- लाभ