सार
शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन (6 अक्टूबर) मां महागौरी की पूजा की जाती है। मां महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है। इनकी चार भुजाएं हैं।
उज्जैन. वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनका स्वभाव अति शांत है। मां महागौरी के प्रसन्न होने पर भक्तों को सभी सुख स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही शांति का अनुभव भी होता है।
इस विधि से करें देवी महागौरी की पूजा
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता महागौरी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता महागौरी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ध्यान मंत्र
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
अर्थात्- जो श्वेत वृषभ (बैल) पर बैठती हैं, श्वेत (सफेद) वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेवजी को आनंद प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मंगल प्रदान करें।
नवरात्र के आठवे दिन देवी महागौरी की ही पूजा क्यों की जाती है?
देवी महागौरी की पूजा से मन को शांति मिलती है। भक्ति के मार्ग पर चलते हुए जब मन में शांति की भाव आ जाए तो समझ लीजिए आपकी पूजा सार्थक हुई, क्योंकि यही वो भाव है जो आपका ईश्वर से साक्षात्कार करवा सकता है। जब मन से सभी बुरी इच्छाएं और भाव खत्म हो जाते हैं, तब ही शांति का भाव आता है। यही कारण है कि नवरात्र के आठवे दिन देवी महागौरी की पूजा की जाती है।
रविवार के शुभ मुहूर्त
सुबह 7.30 से 9 बजे तक- चर
सुबह 9.00 से 10.30 तक- लाभ
सुबह 10.30 से दोपहर 12 बजे तक- अमृत
दोपहर 1.30 से 3.00 तक- शुभ