सार

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66ए के तहत आरोप पत्र को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है। 

लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ (Lucknow Bench) के न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान (Rajesh singh chauhan) ने कहा कि मैंने अपने नोट में लिखा है कि यह मामला जांच अधिकारी द्वारा दिमाग का उपयोग न करने का एक स्पष्ट उदाहरण है, जिसने आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए (Section 66A of the IT Act, 2000) पर आरोप पत्र दायर किया है। अदालत धारा 482 सीआरपीसी (Section 482 CrPC) के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें आरोप पत्र को रद्द करने और आईटी (संशोधन) अधिनियम 2008 की धारा 66 ए के तहत अपराध के लिए आदेश जारी करने की मांग की गई थी। 

संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन मानते हुए किया निरस्त 
अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता (एजीए) अनिरुद्ध कुमार सिंह (public prosecutor aniruddh kumar singh) ने प्रस्तुत किया कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के अधिकार को श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसकी रिपोर्ट (2015) 5 एससीसी 1 में दी गई थी। शीर्ष अदालत ने पैरा 119 के तहत निर्णय और आदेश के तहत सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66-ए को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन मानते हुए इसे निरस्त कर दिया है। 

सुप्रा मामले में लिया गया फैसला
श्रेया सिंघल (सुप्रा) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर, कोर्ट ने समन आदेश और चार्जशीट (Chargesheet) को रद्द कर दिया और निम्नानुसार निर्देश दिया है कि यह आदेश सभी जिला न्यायालयों (district courts) में परिचालित किया जाएगा और पुलिस महानिदेशक को प्रदान किया जाएगा , ताकि आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 ए के तहत कोई प्राथमिकी दर्ज न हो। अधिनियम की धारा 66 (ए) कंप्यूटर या अन्य संचार उपकरणों के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने को अपराध मानती है।