सार

यूपी के जिले अयोध्या में तीस साल पहले बाबरी मस्जिद नारों की गूंज, कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच ढहा दी गई थी। दूसरी ओर 30वीं बरसी के मद्देनजर अयोध्या और मथुरा में जिला प्रशसन ने हाई अलर्ट घोषित कर दिया है और पुलिस-प्रशासन ड्रोन से चप्पे-चप्पे पर नजर बनाए हुए है।

अयोध्या: उत्तर प्रदेश की रामनगरी अयोध्या में तीस साल पहले आज के दिन ही बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था। 6 दिसंबर 1992 को सोलहवीं सदी की बनी बाबरी मस्जिद को कारसेवकों की एक भीड़ ने ढहा दिया था। जिसकी वजह से पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। साथ ही जमकर हिंसा के साथ हजारों लोगों की बलि भी चढ़ गई। बाबरी मस्जिद गिरने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने मस्जिद दोबारा तामील करने की घोषणा की और फिर दस दिन बाद मस्जिद ढहाने की घटना और उसके पीछे कथित षड्यंत्र की जांच के लिए जस्टिस एमएस लिब्राहन की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। हालांकि बाबरी विध्वंस की 30वीं बरसी के मद्देनजर अयोध्या और मथुरा में जिला प्रशसन ने हाई अलर्ट घोषित कर दिया है और पुलिस-प्रशासन ड्रोन से चप्पे-चप्पे पर नजर बनाए हुए है।

विवाद खत्म होने के बाद अभी भी उठता है मुद्दा
जांच आयोग के गठन के करीब 17 साल बाद अपनी रिपोर्ट पेश की मगर कोर्ट में इस मामले में फैसला आने में काफी समय लग गया कि उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उस जगह पर ही मंदिर बनाने का फैसला दे दिया। इसके बाद फिर मंदिर को बनाने की कोशिशों शुरू हो गई। जिस दिन यह ढांचा गिराया गया तो इस मामले में दो एफआईआर भी दर्ज की गई। दूसरी ओर हिंसक घटनाएं और विवादित मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा फिर 2019 में केस की सुनवाई कर फैसला दिया और हमेशा के लिए विवाद को खत्म कर दिया। मगर इसके बाद भी तमाम संगठनों और नेताओं के द्वारा इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है।  

नारों की गुंज के बीच ढहा दिया गया था मस्जिद
चलिए जानते है कि 30 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को हुई इस घटना के दिन क्या हुआ था, इस दिन की सुबह कैसी थी, क्या-क्या तैयारियां थी और किस तरह से ढांचे को गिराया गया था। दरअसल बाबरी के ढांचे को गिराने की तैयारी पहले से ही थी। पांच दिसंबर की सुबह इसके लिए अभ्यास किया गया था। लिब्राहन आयोग के अनुसार विवादित ढांचे को गिराने के लिए अभ्यास किया गया था। इससे जुड़े कुछ फोटोग्राफ आयोग के सामने प्रस्तुत किए गए थे और फिर पूरे दिन गहमा-गहमी के बाद दूसरी दिन यानी छह दिसंबर की सुबह 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे', जय श्रीराम, 'एक धक्का और दो' जैसे नारों की गूंज चारों ओर थी और हर तरफ भीड़ जुटी हुई थी।

विवादित ढांचे के सामने बनाया गया था मंच
बाबरी मस्जिद के पहले करीब दो सौ मीटर दूर रामकथा कुंज में एक बड़ा स्टेज लगाया गया था। यहां पर साधू-संतों के साथ-साथ वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था। इस मंच को तैयार विवादित ढांचे के ठीक सामने तैयार किया गया था, जहां पर विनय कटियार, मुरली मनोहर जोशी, एलके अडवाणी, उमा भारती, कलराज मिश्रा, अशोक सिंहल, रामचंद्र परमहंस मौजूद थे। सुबह नौ बजे का समय था, जहां पूजा-पाठ हो रही थी। साथ ही भजन-कीर्तन भी चल रहे थे। इस दौरान डीएम-एसपी सब वहीं थे और करीब 12 बजे फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट व पुलिस अधीक्षक ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर का दौरा भी किया था मगर वह आने वाले तूफान को भांपने में असफल रहे। उसके कुछ ही देर बाद पूरी तरह से माहौल बदल गया।

भीड़ के हाथों में कुदाल समेत छैनी-हथौड़ा था मौजूद
दूसरी ओर विहिप नेता अशोक सिंघल माइक से बोल रहे थे कि हमारी सभा में अराजक तत्व आ गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि विहिप की तैयारी मंदिर परिसर में सिर्फ साफ-सफाई के साथ पूजा-पाठ की थी मगर इससे सहमत कारसेवक नहीं थे। इसी बीच अचानक से कारसेवकों का एक बड़ा हूजूम नारों की गूंज के बीज विवादित स्थल पर घुसते ही उपद्रव शुरू हो गया। बाबरी के ढांचे पर भीड़ चढ़ गई और साफ नजर आ रहा था कि अब गुंबद के चारों ओर लोग ही लोग नजर आ रहे थे। उन सबके हाथों में कुदाल, बल्लम, छैनी-हथौड़ा जैसी चीजें थी। इन्हीं सबकी मदद से वह ढांचे को गिराने वाले थे। इस तरह से आगे बढ़ रही भीड़ को रोकने का काफी प्रयास भी किया गया तो संघ के लोगों के साथ उनकी छीना-झपटी शुरू हो गई। मगर भीड़ रूकी नहीं और जिसको हाथ में जो मिला लेकर चलता रहा और गुबंद को ढहा दिया।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लेकर दिलाया था भरोसा
6 दिसंबर की दोपहर दो बजे पहला गुबंद गिरा। इस दौरान खबरे मिली की पहले गुंबद के नीचे कुछ लोग दब गए हैं। उसके बाद चार से पांच बजे तक सभी गुंबद गिरा दिए गए थे। दूसरी ओर सीआरपीएफ ने कारसेवकों को रोकने की कोशिश भी की लेकिन उन पर पत्थर बरसने शुरू हो गए। जिसकी वजह से उनको पीछे हटना पड़ा। तमाम सुरक्षा व्यवस्था के बाद इस तरह का उपद्रव हो रहा था और राज्य की कल्याण सिंह सरकार देखती रही। दरअसल अदालत ने आदेश जारी किया था विवादित स्थल पर कोई निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायलय की इस बात का भरोसा कल्याण सिंह ने दिलाया था कि कोर्ट के आदेशों का पालन किया जाएगा। मगर कारसेवकों के आगे सबकुछ फेल साबित हो गया।

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