सार

 प्रयागराज में संगम की रेती पर माघ मेला चल रहा है। पूरे देश से लोग इस माघमेले में गंगा स्नान के लिए आकर पुण्य कमाने के लिए पहुंच रहे हैं। माघ मेले में ही कई साधु ऐसे हैं जो अपनी कठिन साधना कर रहे हैं। कुछ साधु ऐसे भी हैं जो अपने अजीबोगरीब कारनामो को लेकर का माघ मेले में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। ऐसे ही एक संत महाराष्ट्र से चलकर आये हुए बुलेट बाबा हैं। बुलेट बाबा बाल ब्रह्मचारी हैं और पूरे देश के तमाम तीर्थों का भ्रमण अपने बुलेट बाइक से ही करते हैं

प्रयागराज(Uttar Pradesh ).  प्रयागराज में संगम की रेती पर माघ मेला चल रहा है। पूरे देश से लोग इस माघमेले में गंगा स्नान के लिए आकर पुण्य कमाने के लिए पहुंच रहे हैं। माघ मेले में ही कई साधु ऐसे हैं जो अपनी कठिन साधना कर रहे हैं। कुछ साधु ऐसे भी हैं जो अपने अजीबोगरीब कारनामो को लेकर का माघ मेले में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। ऐसे ही एक संत महाराष्ट्र से चलकर आये हुए बुलेट बाबा हैं। बुलेट बाबा बाल ब्रह्मचारी हैं और पूरे देश के तमाम तीर्थों का भ्रमण अपने बुलेट बाइक से ही करते हैं। ASIANET NEWS HINDI ने बुलेट बाबा से बात किया। इस दौरान उन्होंने अपने बचपन से लेकर बुलेट बाबा बनने तक का पूरा किस्सा शेयर किया।  

महर्षि राजेश्वरानंद उर्फ़ बुलेट बाबा मूलतः यूपी के जौनपुर के रहने वाले हैं। साल 1971 में वह यहां से महाराष्ट्र चले गए थे। तब से वह महाराष्ट्र के औरंगाबाद में आश्रम बनाकर रहने लगे। वह महाराष्ट्र से पूरे देश के सभी तीर्थों का दर्शन करने अपने बुलेट से ही जाते हैं। उनका दावा है कि वह ट्रेन से भी तेज स्पीड में बुलेट चलाते हैं। प्रयागराज के माघ मेले में वह लोगों की आस्था और आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। 

बाबा को देखकर सन्यासी बनने की मिली प्रेरणा 
बुलेट बाबा को अपने बाबा जगन्नाथ पांडेय से सन्यासी बनने की प्रेरणा मिली। बुलेट बाबा ने बताया "बचपन में हम अपने बाबा को देखते थे वह बहुत बड़े पुजारी थे अक्सर ध्यान में लीन रहते थे। पूरा गांव उनका पैर छूता था। यही देख कर मेरे भी मन में ये आस्था जगी कि अगर मै भी बाबा की तरह बनूंगा तो लोग मेरा भी पैर छुएंगे। जिसके बाद मै घर से निकल गया।"

घर से बिना बताए पहुंचे अयोध्या 
बुलेट बाबा ने बताया "मुझे घर से गेहूं पिसाने के लिए आटे की चक्की पर भेजा गया। मै वहां से भाग निकला मैंने चक्की पर ही साइकिल व गेहूं छोड़ दिया और अयोध्या जाने वाली ट्रेन में सवार हो गया। मै अयोध्या पहुंचा तो मुझे वहां मेरे गुरू दयानन्द जी महाराज मिल गए। उन्ही से मैंने दीक्षा ली और मै महाराष्ट्र चला गया।" 

महाराष्ट्र जाने के बाद बन गए बुलेट बाबा 
बुलेट बाबा ने बताया "मै महाराष्ट्र के घाटकोपर इलाके में पहुंचा तो वहां मुझे यूपी,बिहार और एमपी के लोग मिल गए। मै वहां यज्ञ,हवन व अनुष्ठान कराने लगा। धीरे-धीरे मेरा नाम वहां मशहूर होने लगा। मै वहां से महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में पहुंचा और वहीं रामलीला मैदान में आश्रम बनाकर रहने लगा। वहां मेरे कई भक्तों ने चढ़ावे में मुझे कई चीजें दीं। मुम्बई के ही एक बिल्डर ने मुझे बुलेट बाइक गिफ्ट में दी। मै बुलेट से ही चलने लगा तब से मुझे बुलेट बाबा ही खा जाने लगा।"

ट्रेन से भी तेज स्पीड से चलने का दावा 
बुलेट बाबा ने बताया कि मै मुम्बई से ट्रेन के साथ ही मै प्रयागराज के माघमेले के लिए निकला था। लेकिन मैंने अपनी बुलेट से 1450 किमी की दूरी ट्रेन से 5 घंटे पहले तय कर ली। हाइवे पर मै 100 से 105 किमी प्रति घंटा की स्पीड से बुलेट चलाता हूं। मै सभी कुम्भों में चाहे वह प्रयागराज का हो,नासिक या हरिद्वार का हो सभी जगह अपनी बुलेट से ही जाता हूं। मुझे ये शान की सवारी लगती है।" 

ब्रह्मचर्य का कर रहे पालन 
बुलेट बाबा ने बताया कि "सन्यासी बनने के बाद मैंने गृहस्थ जीवन स्वीकार नहीं किया। मैंने विवाह नहीं किया। अब मेरे जीवन का सिर्फ एक मकसद भगवत भक्ति व धर्म का प्रचार-प्रसार करना है। मै हर तीर्थ स्थान,कुंभ,व माघमेले में जाता हूं।"