सार

मेरा मानना है कि लोगों को कोरोना से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि मौत तो एक दिन सबको आनी है। बस शरीर को कोई कष्ट न हो इसके लिए इससे बचे और मॉस्क और सेनेटाइजर का उपयोग करें। मैं भी अपने पास मॉस्क रखता हैं, जब घर वालों के अलावा कोई आता है तो लगा लेता हूं और लोगों को लगाने के लिए भी कहता हूं।

लखनऊ (Uttar Pradesh)। मैं हार्ट का पेशेंट हूं। मैंने मुंबई में साल 2018 में अपना वाल्स ट्रांसप्लॉट कराया था। इसके साथ ही मुझे शुगर भी है। मैं दोनों की दवाइयां खाता हूं। सच कहूं तो मैं मौत से नहीं डरता भी नहीं, क्योंकि मैं जानता हूं मौत अटल सत्य है, जब वो आएगी तो कोई रोक नहीं पाएगा, हां, शरीर को कोई तकलीफ न हो, इसके कारण मैं दवाइयां खाता हूं। मैं और मेरी पत्नी कोरोना से संक्रमित होने के बाद एक ही कमरे में थे, जब वो कोरोना के कारण कम उम्र के लड़कों की मौत की खबर सुनती थी तो सोचने लगती थी, लेकिन मैं उसे यही समझाता था कि मौत अटल सत्य है, यदि कोरोना से ही मरना लिखा है तो कोई दवा नहीं बचा सकती है। इसलिए कुछ भी सोचना बेकार है, जो होगा देखा जाएगा। बस, शरीर को कोई तकलीफ न हो इसके लिए बच-बचाकर रहना और संक्रमित होने पर दवाइयां बस खाती जाओ और फिर क्या हमलोगों की इच्छा शक्ति इतनी मजबूत हो गई कि घर पर ही रहकर हमलोगों ने कोरोना से जंग जीत लिया।

Asianetnews Hindi के अंकुर शुक्ला ने जौनपुर में बक्शा विकास खंड के उमरछा गांव के रहने वाले 67 वर्षीय रणजीत शुक्ला से बात की। जिन्होंने यह बताया कि कैसे वह और उनका परिवार कोरोना से घर में ही रहकर जंग जीता। आइये जानते हैं। 

हर रहकर ठीक हो गए परिवार के चार सदस्य
22 अप्रैल को मेरी भयहू शीला असम से घर आई तो अगले दिन उसके पति गुलाब इलाहाबाद से आया। घर में सभी की तबियत ठीक थी, लेकिन दोनों पति-पत्नी को सर्दी-जुखाम हो रहा था। वे कोरोना की दवा बिना जांच कराए ही खा रहे थे। लेकिन, चार दिन बाद मुझे हरारत महसूस हुई। अगले दिन बुखार आने लगा, जिसपर मैं भी मेडिकल से दवा लेकर खाने लगा, तभी पत्नी को भी मेरी ही तरह दिक्कत होने लगी। जिसके बाद मैं समझ गया कि हमलोग कोविड की चपेट में आ गए हैं।  मैं और मेरी पत्नी एक कमरे में रहने लगे, जबकि गुलाब और उनकी पत्नी अलग कमरे में ही होम आइसोलेशन में चले गए। इस दौरान हमलोग डॉक्टर से परामर्श लेकर दवा खाने लगे, 20 दिन में ठीक भी हो गए।

कमजोरी काफी आई
मेरी 67 साल उम्र हो गई है और ऊपर से कोरोना की चपेट में आ गया। इस कारण मुझे और मेरी पत्नी को कमजोरी काफी हो गई। चलने में दिक्कत महसूस होती है, लेकिन मैं अब पूरी तरह से ठीक हूं। बस, पत्नी की अभी दवा चल रही है, क्योंकि उसे कमजोरी ज्यादा है।  

शुरू में 10 दिन खाना देखकर आता था गुस्सा
कोरोना से संक्रमित होने के 10 दिन खाना देखकर गुस्सा आता था, क्योंकि ऐसा लगता था कि जैसे कोई खाने में भूजकर पूरा नमक की डाल दिया हो। हालांकि मेरे भाई दिनेश चंद्र शुक्ल को इसकी जानकारी हुए, जो इलाहाबाद (प्रयागराज) में रहते हैं ने फोन कर खाना अच्छा न लगने पर दूध-रोटी खाने की सलाह दिया, जिसके बाद मैंने भी ऐसा ही किया। बाद में धीरे-धीरे सब्जी भी खाने लगा, लेकिन मुंह सूखा हुआ रहता था। इसलिए मैं इलाइची या लौंग डाल लेता था।

भाई का परिवार हो चुका था पीड़ित, उन्होंने किया गाइड
मेरे भाई दिनेश चंद्र शु्क्ला, पत्नी और उनका बेटा भी कोरोना से संक्रमित थे। ये सभी इलाहाबाद (प्रयागराज) स्थित अपने घर में ही रहकर दवा खा रहे थे, जो अब ठीक हो गए। भाई कोरोना में कैसे-क्या-क्या करना है यह सब बताता रहता था। यहां हमलोग भी ऐसा ही करते था।

ऐसे कोरोना से हासिल किए जीत
घर में ऑक्सीमीटर और नेबुलाइजर रखा हुआ है, जिसकी मदद से हमलोग घर में ही भाप और ऑक्सीजन का पल्स देख थे। मेरे भाई दिनेश ने मुझे ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने का तरीका बताया कि पेट के बल लेटकर और हाथ फैलाकर तेज-तेज सांस लेने को कहा। जिसे करने पर मेरा ऑक्सीजन लेवल 92 से 94 पर पहुंच गया था, जिसके बाद मनोबल और बढ़ गया। मैं और मेरी पत्नी अनलोम-विलोम रोजाना सुबह करते थे, जिससे हमारा ऑक्सीजन लेवल कम नहीं हुआ। योगाभ्यास के बाद हमलोग दिन में दो बार काढ़ा पीते हैं।

अस्पताल की हालत जानकर नहीं कराया टेस्ट
मेरे गांव में बहुत लोग कोरोना से संक्रमित हुए। जिनमें तीन-चार की मौत भी इसी कारण से हुई बताई जाती है। गांव और परिवार के लोग बताते हैं कि कोरोना से पॉजिटिव आने पर मरीजों को अस्पताल में भेज देते हैं। जहां परिवार का कोई सदस्य नहीं जा पाता है। समय पर खाना भी नहीं मिल पाता है, ऊपर से मरीजों के मरने की खबर सुनकर डर लग रहा था, जिसके कारण मैं टेस्ट ही नहीं कराने गया, क्योंकि जब उसका लक्षण मिल रहा है तो उसकी दवा ही खाना हमलोगों ने उचित समझा। मेरा मानना है कि शुरू में जितनी अच्छी देखभाल घर पर हो जाएगी उतनी अस्पताल में नहीं हो सकती है।

कोरोना डरे नहीं, बस बचे
मेरा मानना है कि लोगों को कोरोना से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि मौत तो एक दिन सबको आनी है। बस शरीर को कोई कष्ट न हो इसके लिए इससे बचे और मॉस्क और सेनेटाइजर का उपयोग करें। मैं भी अपने पास मॉस्क रखता हैं, जब घर वालों के अलावा कोई आता है तो लगा लेता हूं और लोगों को लगाने के लिए भी कहता हूं।

Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...। जब भी घर से बाहर निकलें मास्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे। 
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