सार
यूपी के जिले देवरिया में रहने वाली 13 वर्षीय छात्रा मासूम शारा फातमा ने केंद्र और राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई है। वह अपने इलाज के लिए जिला प्रशासन से लेकर केंद्र सरकार से मदद मांग रही है। 10 करोड़ के इंजेक्शन से उसका इलाज हो सकता है।
देवरिया: उत्तर प्रदेश के जिले देवरिया में मासूम छात्रा ने जिला प्रशासन से लेकर केंद्र सरकार तक अपनी जान की गुहार लगाई है। इससे पहले वह अपनी जान को बचाने के लिए कई लोगों से विनती की लेकिन अभी तक सिर्फ आश्वासन ही मिला पर किसी ने उसके इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं की। इसी वजह से छात्रा ने जिला प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगाई है। छात्रा शहर के एक नामी स्कूल में कक्षा पांच की छात्रा है।
स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक बिमारी से है ग्रसित
जानकारी के अनुसार शहर के जिला मुख्यालय के अबूकनगर की रहने वाली 13 वर्षीय छात्रा शारा फातमा लारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक बीमारी से ग्रसित है। इस गंभीर बीमारी से पीड़ित शारा फातमा के पिता अबूज लारी का कहना हैं कि जब वह पैदा हुई तो कुछ महीनों के बाद भी इसके शरीर में कोई मूवमेंट नहीं हुई। उसके बाद उसको वह दिल्ली के गंगाराम हॉस्पिटल में इलाज के लिए गए तो वहां के डॉक्टरों ने इसे स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी नामक बीमारी से ग्रसित बताया। चिकित्सकों के द्वारा बताई गई इस बिमारी पर यकीन नहीं हुआ तो एम्स गए। वहां के डॉक्टरों ने यही बीमारी बताई।
परिजन ने छात्रा के नाम से खोला अलग अकाउंट
बेटी को बचाने के लिए पीड़ित परिवार ने केंद्र और राज्य सरकार से गुहार लगाई है। इसके लिए उन्होंने एक अलग से अकाउंट भी खोला है। इसी अकाउंट में लोगों से पैसा जमा करने की अपील की है ताकि वह अपनी बेटी का इलाज करा सके। कक्षा पांच में पढ़ने वाली छात्रा शारा फातमा लारी को बड़े होकर वैज्ञानिक बनना है ताकि वह उस बीमारी से रिसर्च कर सके जिससे वह ग्रसित है। इस बीमारी पर रिसर्च के बाद कोई इससे पीड़ित न हो। घरवालों का कहना है कि पूरे भारत देश में लगभग 400 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित हैं लेकिन इसकी दवा भारत में अभी नहीं बनी है। इस बीमारी से संबंधित दवा सिर्फ स्विट्जरलैंड और अमेरिका ने ही बनाई है। छात्रा के परिजन का कहना है कि अगर राज्य और केंद्र सरकार मदद करें तो उनकी लड़की अपने पैरों पर खड़ा हो सकती है।
12 साल पहले वैज्ञानिकों ने किया था रिसर्च
आपको बता दें कि 12 साल पहले इस बीमारी पर वैज्ञानिकों ने रिसर्च किया था। उस समय तक इसकी कोई दवा भी नहीं बनी थी लेकिन अब इसकी दवा केवल विश्व के दो देश में बनती है, वह अमेरिका और स्विट्जरलैंड हैं। इसको लाने का खर्च करीब 10 करोड़ है लेकिन पीड़ित परिवार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह अपनी बच्ची की जान को बचाने के लिए इतनी रकम का इंतजार कर सकें। परिजन ने बताया कि उनको डॉक्टरों ने बताया था कि पहले रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन होगा। उसके बाद स्प्रीनरजा न्यूसीरनसीन और रीजट्रीप्लांम दो ऐसी दवाएं हैं, जो इसकी रीढ़ की हड्डी में इंजेक्ट की गई जाएगी। इसके बाद ही बच्ची अपने पैरों पर खड़ी हो पाएगी। इसी इलाज में खर्च 10 करोड़ आएगा।