सार
शिव की नगरी काशी में अलग ही नजारा देखने को मिला। मान्यता के अनुसार आज बाबा विश्वनाथ मां गौरा का गौना कराकर काशी विश्वनाथ मंदिर लाते हैं। इसी खुशी में काशी के लोग जमकर गुलाल और अबीर खेलते हैं।
अनुज तिवारी
वाराणसी: शिव की नगरी काशी में अलग ही नजारा देखने को मिला। मान्यता के अनुसार आज बाबा विश्वनाथ मां गौरा का गौना कराकर काशी विश्वनाथ मंदिर लाते हैं। इसी खुशी में काशी के लोग जमकर गुलाल और अबीर खेलते हैं। मंहत परिवार के घर से माता गौरा का विदाई कराकर बाबा विश्वनाथ परिक्षेत्र में लाते हैं। काशी में तभी से ही होली का पर्व शुरू हो जाता है। ऐसे में सभी ने हर-हर महादेव के उद्घोष से पूरा काशी गूंज उठा हैं। सब बाबा की एक झलक पाने के लिए लाइन में खड़े रहें।
364 साल पूराने परम्परा का हुआ निर्वाहन
काशी में यह रस्म पिछले 364 साल से निभाई जा रही है। इसे देखने के लिए देश के दूर दराज हिस्सों से शिवभक्त काशी आते हैं। गौरा के गौना के लिए मंहत आवास को माता गौरा का मायका बनाकर यहीं पर रस्म अदा की जाती है। रंगभरी एकादशी की रस्म टेढ़ी नीम स्थित महंत आवास से इसकी शुरूआत गौरा को हल्दी-तेल लगाने की रस्म के साथ हुई। इस मौके पर महिलाओं ने मंगल गीत गाए और काशीवासी बाबा के इस उत्सव में मस्ती करते दिखे।
खास है काशी की रंगभरी होली
देश दुनिया भर में जैसे ब्रज की होली की धूम रहती है उसी तरह बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में रंगभरी एकादशी का अलग ही रूप रंग दिखाई देता है। यहां जब बाबा विश्वनाथ माता गौरा के साथ रेशमी धोती दुपट्टा डाले सजे हुए पालकी में निकलते हैं तो पूरी काशी बाबा की एक झलक पाने के लिए आतुर रहती है। सभी के हाथों में रंग गुलाल रहते हैं और बाबा को दर्शन कर बाबा के ऊपर रंग गुलाल चढ़ाने की एक अलग ही उमंग उत्साह दिखाई देता है।
देव लोक से पहुंचते देवी देवता
मान्यता यह भी है कि देव लोग के सारे देवी देवता इस दिन स्वर्ग लोक से बाबा के ऊपर गुलाल डालते हैं। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास की जगह अबीर और गुलाल के रंगों से सराबोर हो जाती है। भक्त जमकर बाबा के साथ होली खेलते हैं। मान्यता यह भी है कि बाबा इस दिन माता पार्वती का गौना करा कर वापस लौटते हैं। पूरे काशी वासियों के साथ होली खेलते हुए अपने दरबार में बैठते हैं जहां बाबा विश्वनाथ को आसन पर बैठाया जाता है।