सार

अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पहली पुनर्विचार याचिका सोमवार को दाखिल की गई। बाबरी मस्जिद के पक्षकारों में से एक जमीअत उलेमा ए हिंद के जनरल सेक्रेटरी मौलाना असद रशीदी ने 217 पन्नों के दस्तावेजों के साथ यह याचिका दाखिल की है।

लखनऊ (Uttar Pradesh). अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पहली पुनर्विचार याचिका सोमवार को दाखिल की गई। बाबरी मस्जिद के पक्षकारों में से एक जमीअत उलेमा ए हिंद के जनरल सेक्रेटरी मौलाना असद रशीदी ने 217 पन्नों के दस्तावेजों के साथ यह याचिका दाखिल की है। इसमें कहा गया है कि जब कोर्ट ने माना कि वहां नमाज होती थी, फिर क्यों मुसलमानों को बाहर कर दिया गया। 1949 में अवैध तरह से वहां मूर्ति रखी गई, फिर भी रामलला को पूरी जमीन दे दी गई। 

कोर्ट ने दूसरे पक्ष को क्यों दी पूरी जमीन
रशीदी ने कहा, कोर्ट के फैसले का पहला हिस्सा और दूसरा हिस्सा ही एक-दूसरे का विरोधाभासी है। पहली बार में कोर्ट ने इस बात पर सहमति जताई है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़कर नहीं किया गया था। 1992 का मस्जिद विवाद अवैध है। फिर कोर्ट ने यह जमीन दूसरे पक्ष को क्यों दे दी? 

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था ये फैसला
बीते 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की खंडपीठ ने अयोध्या का विवादित जमीन रामलला विराजमान को सौंपी थी। जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में कहीं भी पांच एकड़ जमीन देने का आदेश राज्य सरकार को दिया था। 

ये थे अयोध्या मामले पर सभी मुस्लिम पक्षकार
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपीलें दायर की गई थीं। इनमें 6 याचिकाएं हिंदुओं और 8 मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दाखिल की गई थीं। मुस्लिम पक्षकारों में सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद (हामिद मोहम्मद सिद्दीकी), इकबाल अंसारी, मौलाना महमूदुर्रहमान, मिसबाहुद्दीन, मौलाना महफूजुर्रहमान मिफ्ताही, मोहम्मद उमर, हाजी महबूब और मौलाना असद रशीदी शामिल थे। बता दें, AIMPLB इस मामले में सीधे तौर पर शामिल नहीं था, लेकिन मुस्लिम पक्षकार की ओर से पूरा मामला उसी की निगरानी में चल रहा था। 

ओवैसी के साथ हुई बैठक में लिया गया था पुनर्विचार याचिका का फैसला 
बीते दिनों लखनऊ में हुई AIMPLB की बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया गया। बोर्ड की तरफ से कासिम रसूल इलियास ने कहा, याचिका दाखिल करने के साथ मस्जिद के लिए दी गई 5 एकड़ जमीन को भी मंजूर नहीं करने का फैसला लिया गया है। मुसलमान किसी दूसरे स्थान पर अपना अधिकार लेने के लिए उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे। वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा था, हमें पता है पुनर्विचार याचिका का हाल क्या होना है, लेकिन फिर भी हमारा यह हक है। बता दें, उस बैठक में एएमआईएएम अध्यक्ष असददुद्दीन ओवैसी भी शामिल थे।

AIMPLB की बैठक में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए कही गई थीं ये तीन अहम बातें 

- 22/23 दिसंबर 1949 की रात जब बलपूर्वक रामचंद्रजी की मूर्ति और अन्य मूर्तियों का रखा जाना असंवैधानिक था तो इन मूर्तियों को 'देवता' कैसे मान लिया गया? जो हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी देवता (Deity) नहीं हो सकती हैं।

- बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित हुआ है तो मस्जिद की जमीन को वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को किस आधार पर दे दी गई?

- संविधान की अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-ए और 51 (1) के अंतर्गत मस्जिद की जमीन को एक्सचेंज या ट्रांसफर पूर्णतया बाधित है। फिर इस कानून के विरुद्ध और उपरोक्त वैधानिक रोक/पाबंदी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है? जबकि खुद माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की माननीय न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है।