सार

जौनपुर में 140 साल बाद भी बिना दुल्हन के ही बारात को बैरंग वापस लौटना पड़ा। बाराती यहां अगले साल फिर आने की चेतावनी देकर वापस चले गए। यह परंपरा कजरी के दिन हर साल ऐसे ही निभाई जाती है।

जौनपुर: दो गांवों से आई बारात आखिर 140 साल बाद इस बार भी बिना दुल्हन के ही बैरंग वापस लौट गई। जौनपुर में दोनों गांव से हाथी-घोड़े पर सवार होकर बैंड बाजा के साथ नाचते-गाते हुए बाराती निकले। हालांकि बाद में दूल्हे को मायूसी ही हाथ लगी। इस बीच दोनों गांव के लोगों ने अगले साल फिर से आज के ही दिन बारात लाने की चेतावनी भी दी। 

140 सालों से चली आ रही है परंपरा
आपको बता दें कि यह परंपरा तकरीबन 140 साल से ऐसे ही चली आ रही है। इसे कजरी के दिन निभाया जाता है। परंपरा के मुताबित इस दिन पड़ोस के दो गांव में लड़किया जरई बोने तालाब में गई थी। हालांकि दोनों के बीच वहां पर कजरी गीत गाने को लेकर कंपटीशन हो गया। देखते ही देखते रात हो गई लेकिन सुबह तक इस प्रतियोगिता का कोई भी विजेता घोषित न हो सका। बराबरी के कंपटीशन के बाद गांव के नवाब में सुबह वापस जाते समय लड़कियों को विदाई के तौर पर कपड़ा दिया। उसके बाद से ही यह परंपरा लगातार चली आ रही है। ग्रामीण कहते हैं कि उन्हें खुद नहीं पता कि कब से यह परंपरा चल रही है फिलहाल वह इसे अपने जन्म के बाद से तो लगातार ही देख रहे हैं। 

आपसी सौहार्द के साथ होता है परंपरा का निर्वाहन 
आपको बता दें इस साल भी इसी तरह का मेला आयोजित हुआ। मेले से पहले कजगांव में कई जगहों पर मंडप बनाए गए और महिलाएं शादी के गीत गाते हुए नजर आईं। रजोपुर में भी ऐसा ही होता है। वहां भी जगह-जगह पर मंडप बने और गीत गाए गए। गाजे-बाजे के साथ पोखरे तक बारात पहुंचे। दोनों ओर से बाराती शादी के लिए एक दूसरे को ललकारते हैं फिर सूर्यास्त के समय बिना शादी के ही बारात वापस चली जाती है। यह परंपरा आपसी सौहार्द और भाईचारे के साथ मनाई जाती है। 

संभल में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा 'मुर्दा' पुलिस ने नहीं लिया सीरियस तो कोर्ट से लगाई गुहार