सार

यूपी के जिले मिर्जापुर में अटारी गांव में दीपावली को शोक दिवस की तरह मनाते हैं। यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है और गांव का हर सदस्य इसको बाखूबी निभा भी रहा है। गांव में दिवाली के दिन कोई दीपक नहीं जलता, घर में कोई पूजा नहीं होती। 

दीपोत्सव में 17 लाख दियों से जगमगाएगी रामनगरी अयोध्या, पहली बार PM मोदी भी होंगे शामिल, जानिए पूरा कार्यक्रमपूरे देश में दीपावली के त्योहार का इंतजार हर किसी को रहता है। इसको धूमधाम से मनाने के लिए लोग एक महीने पहले से ही घरों को सजाने में, खरीदारी करने में, दोस्तों व रिश्तेदारों को गिफ्ट भेजने में जुट जाते हैं। इस दिन हर घर में गणेश-लक्ष्मी का पूजन के बाद घी या तेल के दीपक पूरे घर में जलाते है। हर व्यक्ति पूजा करने के बाद एक-दूसरे के घर मिलने के लिए जाता है और मिठाई खिलाकर खुशियां मनाता हैं। पर क्या आप जानते हैं कि रोशनी के इस पर्व में पूरा देश तो जगमग करता है लेकिन उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एक गांव ऐसा भी हैं, जहां दिवाली को शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यहां इस दिन किसी भी घर में कोई पूजा-अर्चना तो दूर घर में दीपक तक नहीं जलाता। हैरान करने वाली बात तो यह है कि यह परंपरा सालों से चली आ रही है।

इस समाज के लोग नहीं मनाते दिवाली
जानकारी के अनुसार शहर के मड़िहान तहसील के राजगढ़ इलाके के अटारी गांव में दिवाली को शोक दिवस के रूप में मनाते है। इस गांव के अलावा इसके आसपास बसे करीब आधा दर्जन गांव मटिहानी, लालपुर, मिशुनपुर, खोराडीह में दिवाली का त्योहार शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है। सभी गांवों में रहने वाले चौहान समाज की करीब आठ हजार की आबादी सैकड़ों साल से इस परंपरा को निभाती चली आ रही है। ग्रामीण पीढ़ी दर पीढ़ी दीपावली को शोक मनाने की परंपरा का निर्वाह आज के समय में भी बखूबी कर रहा है। सैकड़ो साल से यह अनोखी परंपरा आज तक चल रही है।

जानिए क्यों नहीं मनाई जाती दीपावली
दरअसल इन गांवों में बसे चौहान समाज के लोग खुद को अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का वशंज बताते हैं। ऐसा उनका मानना है कि दीपावली के दिन ही मोहम्मद गौरी ने सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी। इतना ही नहीं गौरी ने शव को गंधार में ले जाकर दफनाया भी था। इस वजह से लोग इस दिन अपने घरों में कोई रोशनी नहीं करते। इसी कारणवश समाज के लोग दीपावली के पर्व को शोक मनात हैं। राजगढ़ इलाके के गांव अटारी में चौहान समाज के लोगों की बाकी गांवों से आबादी ज्यादा है। ग्रामीण दिवाली की जगह देव दीपावली (एकादशी) के दिन खुशी-खुशी से पूजा-अर्चना कर घरों को रोशन करते हैं। 

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