सार
पीएम नरेंद्र रविवार यानी 16 फरवरी को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। सबसे पहले पीएम जंगमबाड़ी मठ पहुंचे और पूजा अर्चना की। इस दौरान पीएम ने संतों को संबोधित भी किया। आज हम आपको इस मठ के बारे में बताने जा रहे हैं। बता दें, महाशिवरात्रि में इस मठ में काफी भीड़ होती है। इस बार 21 फरवरी को महाशिवरात्रि है।
वाराणसी (Uttar Pradesh). पीएम नरेंद्र रविवार यानी 16 फरवरी को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। सबसे पहले पीएम जंगमबाड़ी मठ पहुंचे और पूजा अर्चना की। इस दौरान पीएम ने संतों को संबोधित भी किया। आज हम आपको इस मठ के बारे में बताने जा रहे हैं। बता दें, महाशिवरात्रि में इस मठ में काफी भीड़ होती है। इस बार 21 फरवरी को महाशिवरात्रि है।
आजतक कोई नहीं बता सका मठ में कितने शिवलिंग
वाराणसी के गोदोलिया इलाके में 5 हजार स्क्वायर फीट में फैले इस मठ के अंदर कई गुरुओं की जिंदा समाधियां हैं। मंदिर के पुजारी स्वामी सिद्ध लिंगम कहते हैं, 5वीं शताब्दी में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जगतगुरु विश्वाराध्य जी उद्भव हुए थे, जिन्होंने इस मठ की स्थापना की। जबकि शिवलिंग की स्थापना जगतगुरु विश्वाराध्य के न रहने के बाद से ही शुरू हुई, जो आज तक चली आ रही है। आज तक कोई नहीं बता सके कि मठ में कितने शिवलिंग हैं।
मुक्ति के लिए यहां पिंडदान की जगह स्थापित करते हैं शिवलिंग
वो कहते हैं, राजा जयचंद ने मठ के लिए भूमि दान कर इसका निर्माण कराया। अब तक मठ में 86 जगतगुरु हो चुके हैं। वर्तमान में चंद्रशेखर शिवाचार्य महराज हैं। इसके निर्माण के दौरान लाखों की संख्या में खंडित शिवलिंग जमीन से निकले तो सभी को एक जगह जमीन में रखकर ऊपर विश्वनाथ स्वरुप मंदिर बना दिया गया। वर्तमान में कई लाख शिवलिंग मठ के अंदर मौजूद हैं। कई बार कुछ लोगों ने शिवलिंग को गिनने की कोशिश की, लेकिन वो गिनती ही भूल गए। महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा समेत कई राज्यों से वीर सौर्य सम्प्रदाय के लोग अपने पूर्वजों के मुक्ति के लिए यहां पिंडदान की जगह शिवलिंग स्थापित करते हैं।
मठ में कुछ ऐसी है मान्यता
मान्यता है की वीर सौर्य सम्प्रदाय के जिन लोगों की अचानक मौत हो जाती है। उनके उनके नाम से यहां शिवलिंग स्थापित करने पर उन्हें मुक्ति मिलती है। वहीं, वीर सौर्य सम्प्रदाय में जब महिला पांच महीने की प्रेग्नेंट होती है, तब उसके कमर पर बच्चे की रक्षा के लिए छोटा सा शिवलिंग बांधा जाता है। बच्चे के जन्म के कुछ महीनों बाद वही शिवलिंग गले में बांधा जाता है। मां दूसरा शिवलिंग धारण कर लेती है, जो जीवन भर उसके साथ रहता है। बच्चे का नामकरण जो भी गुरु करता है, वो शिवलिंग की पूजा कर वापस गले में बांध देता है।