सार

राम मंदिर निर्माण को लेकर हलचल तेज हो गई। इसी बीच 2 पूजित राम शिलाओं के 18 साल बाद ट्रेजरी से बाहर आने की चर्चा भी शुरू हो गई।

लखनऊ (Uttar Pradesh). राम मंदिर निर्माण को लेकर हलचल तेज हो गई। इसी बीच 2 पूजित राम शिलाओं के 18 साल बाद ट्रेजरी से बाहर आने की चर्चा भी शुरू हो गई। बता दें, इन शिलाओं को 15 मार्च 2002 को अयोध्या आंदोलन के प्रमुख किरदार दिगंबर अखाड़ा के प्रमुख रामचंद्र परमहंस और विहिप के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंहल ने केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में गठित अयोध्या प्रकोष्ठ के प्रभारी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी को सौंपी थी।

क्या है शिलाओं के ट्रेजरी का पूरा मामला
साल 2002 में केंद्र में अटल बिहारी के नेतृत्व में केंद्र में राजग और यूपी में राजनाथ सिंह के नेतृत्व वाली सरकार बनी। उस दौरान राम मंदिर निर्माण को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं लिए जाने से संतों में नाराजगी थी। विहिप पर भी सवाल उठ रहे थे। इसी को देखते हुए अटल ने अपने अधीन अयोध्या प्रकोष्ठ का गठन किया। लेकिन इस बीच परमहंस ने अयोध्या में 100 दिन के यज्ञ और 15 मार्च 2002 को जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण शुरू करने की घोषणा कर दी। ऐसा न होने पर प्राण दे देने का भी ऐलान किया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर यथास्थिति का सख्त निर्देश दिया।

अटल जी ने ऐसे निकाला था बीच का रास्ता 
इस मुश्किल घड़ी में अटल बिहारी ने एक रास्ता निकाला और परमहंस से फोन पर बात की। जिसमें उन्होंने परमहंस को विवादित स्थल पर न जाने और प्रतीकात्मक शिलादान के लिए राजी करवा लिया। इसके बाद परमहंस और सिंहल के नेतृत्व में सैकड़ों लोग 2 राम शिलाओं का पूजन करके आगे बढ़े। विवादित स्थल से पहले दशरथ महल में अयोध्या प्रकोष्ठ के प्रभारी शत्रुघ्न सिंह ने प्रशासनिक अधिकारियों के साथ इन शिलाओं को लिया। इस दौरान परमहंस और सिंघल दोनों ने इन शिलाओं को मंदिर के गर्भगृह में लगाने की इच्छा जताई थी। 

क्यों महत्वपूर्ण है ये शिलाएं
शिलादान कार्यक्रम में शामिल रहे विहिप के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा कहते हैं, ट्रेजरी में रखीं दोनों राम शिलाएं कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं। एक तो ये स्व. परमहंस और सिंहल जैसे उन लोगों ने पूजन करके सरकार को सौंपी थी, जिनका राम मंदिर आंदोलन में अतुलनीय योगदान है। इसके अलावा गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ, महंत अवैद्यनाथ सहित तमाम संतों, विहिप के महेशनारायण सिंह, कोठारी बंधुओं सहित उन तमाम कारसेवकों को श्रद्धांजलि का भी माध्यम हैं जो अपने जीते जी मंदिर निर्माण का सपना साकार होते नहीं देख पाए। इसलिए भी इन्हें गर्भगृह जैसे मुख्य पवित्र स्थल पर लगाना है। प्रयागराज में संतों की केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में इन शिलाओं को ट्रेजरी से बाहर लाने और गर्भगृह में किस स्थान पर लगाने का निर्णय हो सकता है।