सार
सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने एक बार फिर भाजपा सरकार पर उनके कामों का श्रेय लेने का आरोप मढ़ दिया। इस बार अखिलेश का दावा है कि इस परियोजना का सपा सरकार में ही तीन चौथाई काम पूरा हो गया था। जबकि यूपी की भाजपा सरकार पांच साल में सिर्फ एक चौथाई काम को पूरा कर सकी।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विधानसभा चुनाव 2022 अब दूर नहीं है। सिर्फ दो महीने ही बाकी हैं। ऐसे में भाजपा (BJP) और सपा (SP) समेत अन्य सभी दल राजनीतिक बिसात बिछाने में लगे हैं। भाजपा और सपा के बीच विकास कार्यों को लेकर भी आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बलरामपुर (Balrampur) जिले में 4 दशक से लंबित पड़ी सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना का लोकार्पण (Saryu Canal National Project launch) किया तो सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने एक बार फिर भाजपा सरकार पर उनके कामों का श्रेय लेने का आरोप मढ़ दिया। इस बार अखिलेश का दावा है कि इस परियोजना का सपा सरकार में ही तीन चौथाई काम पूरा हो गया था। जबकि यूपी की भाजपा सरकार पांच साल में सिर्फ एक चौथाई काम को पूरा कर सकी।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के इन दावों को लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं। केंद्रीय जल आयोग (central water commission) की तरफ से वो आंकड़े पेश किए गए, जिसमें ये बताया गया कि फरवरी 2017 तक सिर्फ 42% काम ही पूरा हो पाया था। यानी परियोजना की शुरुआत 1978 से लेकर 2017 तक तीन चौथाई नहीं, बल्कि दो चौथाई भी काम पूरा नहीं हो सका था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चार दशक बाद फरवरी 2017 तक इस परियोजना में सिर्फ 42.66% काम ही पूरा हो पाया था। जबकि फाइनेंसियल प्रोग्रेस सिर्फ 35.03% पूरी हुई थी। यानी सपा अध्यक्ष अखिलेश के दावों और परियोजना की हकीकत में बड़ा अंतर निकलकर सामने आया।
सबसे पहले जानिए अखिलेश ने क्या कहा...
सपा के समय तीन चौथाई बन चुकी ‘सरयू राष्ट्रीय परियोजना’ के शेष बचे काम को पूर्ण करने में उप्र भाजपा सरकार ने पांच साल लगा दिए। 22 में फिर सपा का नया युग आएगा…विकास की नहरों से प्रदेश लहलहाएगा।
अखिलेश के इन दावों की मानें तो 2017 तक इस परियोजना में तीन चौथाई काम पूरा हो गया था। यानी योगी सरकार ने पांच साल में सिर्फ एक चौथाई काम पूरा कराया।
जबकि, यूपी के मुख्यमंत्री ने ये कहा था...
एक दिन पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने बताया कि इस परियोजना का प्रारूप साल 1972 में तैयार हो गया था। साल 1982 में इस परियोजना का विस्तार करके 9 जनपदों तक फैलाया गया। साल 1978 से 2017 तक यानि 40 सालों तक इस योजना में सिर्फ 42 फीसदी कार्य ही हो पाया। भाजपा सरकार आने के बाद इस परियोजना को साल 2017 से 2021 के बीच शेष 58 फीसदी कार्य पूरा कराया गया। सीएम योगी ने कहा कि पीएम मोदी ने साल 2014 में किसानों की आय दोगुना करने का जो संकल्प लिया था उसी को फलीभूत करने के लिए इस परियोजना को पूरा करने में मदद मिली।
क्या कहते हैं- सरयू नहर परियोजना की मॉनिटरिंग रिपोर्ट के आंकड़े, अप्रैल 2017 की रिपोर्ट...
Overall Weighted Physical Progress up to 02/2017 : 42.66%
Financial Progress up to 02/2017: 35.03%
पढ़िए- केंद्रीय जल आयोग की अप्रैल 2017 की रिपोर्ट...
2017 तक ये आ रहीं थी समस्याएं, जिन पर रहा सरकार का फोकस
संशोधित डीपीआर तैयार करना
2017 में परियोजना के दायरे में बड़े बदलाव किए गए। परियोजना का दायरा (CCA) घटा दिया गया। पहले ये 4.04 लाख हेक्टेयर था, जो 3.54 लाख हेक्टेयर कर दिया गया। इसके दायरे में इतना बड़ा बदलाव होने से इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) में भी संशोधन करना है। इसमें लागत संशोधन (Cost Revision), प्रोजेक्ट का दायरा, प्रोजेक्ट कॉपोनेंट्स (project components), सिंचाई के तरीके में दबाव और गुरुत्वाकर्षण (pressure, gravity) पर भी फर्क पड़ रहा है। इन सभी की नए सिरे से डिटेल शामिल की गई।
इतने सारे बदलाव होने की वजह से संशोधित डीपीआर तैयार करना जरूरी हो गया है। क्योंकि इसमें परियोजना के उद्देश्य तकनीकी और आर्थिक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। इसकी मॉनिटरिंग के पहलुओं समेत परियोजना के घटकों की संख्या, लेआउट आदि जानना जरूरी हो गया है। चूंकि, ये प्रोजेक्ट पीएमकेएसवाई (PMKSY) के तहत पूरा होना है, ऐसे में राज्य सरकार को नए सिरे से डीपीआर से लेकर अन्य जरूरी फॉर्मल्टी प्रोसेस को फास्ट ट्रैक के तहत पूरा करवाकर भेजना होगा।
CAD और WM कार्यों के लिए डीपीआर तैयार करना
संशोधित परियोजना के अनुसार, 6520 nos. आउटलेट और 420 nos. V-Water Courses के तहत कुंओं का निर्माण प्रस्तावित है। इसके साथ ही परियोजना प्राधिकरण का कहना था कि शेष सीएडी (CAD) कार्य सीएडीडब्ल्यूएम (CADWM) के दिशा-निर्देश अनुसार होंगे। इसमें एक अलग सीएडीडब्ल्यूएम (CADWM) प्रस्ताव अलग से प्रस्तुत किया जाएगा। CAD कार्यों में बैलेंस फील्ड चैनल, स्प्रिंकलर और ड्रिप तकनीक से सिंचाई, डब्ल्यूयूए का गठन शामिल है।
दरअसल, सरयू नहर परियोजना के तहत बैलेंस एरिया में कमांड एरिया के विकास कार्यों को भी आगे बढ़ाने के लिए डीपीआर तैयार करने की जरूरत थी और आगे की जरूरी कार्रवाई के लिए सीडब्ल्यूसी को पेश किया जाना था। साथ ही फील्ड चैनलों के निर्माण को उच्च प्राथमिकता पर रखा जाना था, क्योंकि नहर से सिंचाई के पानी को अलग-अलग क्षेत्रों में पहुंचाना बहुत जरूरी था, ताकि तैयार की गई सिंचाई क्षमता (Irrigation Potential) और उपयोग किए गए IP के बीच के अंतर को कम किया जा सके। सीडब्ल्यूसी (CWC) ने सिंचाई परियोजनाओं के लिए दबाव सिंचाई प्रणाली (pressure irrigation system) के लिए डिजाइन के संबंध में गाइडलाइन जारी की और इसे पहले ही राज्य सरकार को भेज दिया गया है। यह सुझाव दिया गया कि परियोजना में दबाव सिंचाई प्रणाली के डिजाइन को सीडब्ल्यूसी डिजाइन दिशा-निर्देशों के अनुसार तैयार किया जा सकता है। मगर, अप्रैल 2017 तक राज्य सरकार की तरफ से परियोजना का सीएडीडब्ल्यूएम प्रस्ताव ही पेश नहीं किया गया।
भूमि अधिग्रहण
इसके साथ ही राज्य सरकार से ये भी कहा गया था कि उपलब्ध फंड से शेष भूमि के अधिग्रहण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यानी 2017 तक इस परियोजना का पूरी तरह भूमि अधिग्रहण ही नहीं हो पाया था।
42 साल तक राजनीति में फंसी रही परियोजना की खासियत....
- ये परियोजना 1978 में शुरू हुई थी। यूपी सरकार का दावा है कि चार दशक पुरानी इस परियोजना को 4 साल में पूरा कराया है।
- करीब 9802 करोड़ रुपए की लागत से सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना तैयार हुई।
- इस परियोजना का लाभ 9 जिलों के 6,227 गांवों के 30 लाख किसानों को मिलेगा। करीब 15 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी।
- इस परियोजना की मुख्य नहर 350 किमी लंबी है। सहायक नहरों की लंबाई 6623 किमी है।
- इस परियोजना के तहत पांच नदियों घाघरा, सरयू, राप्ती, बाणगंगा और रोहिणी नदियों को जोड़ा गया है।
- जिन 9 जिलों को लाभ होगा, उनमें बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, गोरखपुर और महाराजगंज शामिल हैं।
योगी बोले- पांच दशक से 18 परियोजनाएं लंबित थीं, हमने साढ़े 4 साल में 17 पूरी कर दीं....
शनिवार को सीएम योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट किया और बताया कि ‘पांच नदियों घाघरा, सरयू, राप्ती, बाणगंगा और रोहिणी को जोड़ने वाली 'सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना' जल संसाधनों के समुचित उपयोग को सुनिश्चित करती 'प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना' की सबसे बड़ी परियोजना है। इस युगांतकारी सौगात के लिए प्रधानमंत्री का हार्दिक आभार।’ उन्होंने ये भी कहा कि 'जनविरोधी विपक्षी सरकारों की अकर्मण्यता के कारण विगत पांच दशकों से उत्तर प्रदेश में 18 कृषि कल्याणकारी परियोजनाएं लंबित थीं। वर्तमान प्रदेश सरकार ने उनमें से 17 परियोजनाओं को धरातल पर उतार दिया है। बता दें कि कुछ दिन पहले ही सीएम योगी आदित्यनाथ ने परियोजना का बलरामपुर में पहुंचकर निरीक्षण किया था। सीएम का कहना था कि कृषि एवं कृषक उत्थान को समर्पित 'सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना' विकास के नए मानक स्थापित करेगी।
पीएमओ ने कहा....
2016 में परियोजना को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री ने इसे कृषि सिंचाई योजना में शामिल किया। इस प्रयास के तहत भूमि अधिग्रहण से संबंधित लंबित केस समेत अन्य समस्याओं का समाधान तलाश और परिणामस्वरूप चार साल के भीतर महत्वपूर्ण परियोजना का काम पूरा कर लिया गया।
ये रहा अब तक सफरनामा....
- सरयू नहर परियोजना का लोकार्पण होने के साथ पूर्वांचल के बस्ती समेत 9 जिलों के किसानों की उम्मीदों की फसल इसी रबी सत्र में लहलहाएगी। ये परियोजना दस साल में पूरी की जानी थी, लेकिन चार दशक तक अधूरी रही। सिंचाई क्षमता बढ़ाकर खरीफ और रबी की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए इस परियोजना की शुरुआत 1978 में की गई। दरअसल, नहर में जगह-जगह गैप होने से इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा था। गैप भरने के लिए किसान बाजार दर से जमीन के मुआवजे की मांग कर रहे थे। लेकिन, इसको लेकर राजनीति की जाने लगी।
- 10 साल की इस परियोजना को पूरा होने में 42 साल बीत गए। प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद 2018 में बाजार दर पर जमीन क्रय करने के साथ ही गैप भरने की कार्रवाई तेजी के साथ शुरू की गई। इस परियोजना को 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया, लेकिन योगी सरकार ने तय समय से पहले ही 31446 लाख रुपए खर्च कर 140 किमी गैप को पूरा करा दिया। पिछले रबी सत्र में पहले ही नहर में पानी छोड़कर इसका ट्रायल भी किया जा चुका है। धूल उड़ती नहर में पानी देख किसान खुशहाल हैं।
- 41 साल में जितनी भी सरकारें आईं, सबके एजेंडे में किसान थे लेकिन इस परियोजना को पूरा करने की दृढ़ इच्छाशक्ति किसी ने नहीं दिखाई। समय बढ़ने के साथ जमीन और परियोजना की लागत भी बढ़ती गई। सरकारें बदलती रहीं तो दूसरी तरफ परियोजना में अफसर भी आते जाते रहे। सबने इसे अलग-अलग नजरिए से देखा। नतीजतन, तीन बार संशोधित कर इसकी निर्माण लागत बढ़ाई गई।
- सरयू नहर परियोजना को राष्ट्रीय नहर का दर्जा दिया गया। समयबद्ध पूरा करने के लिए निगरानी को दो मुख्य अभियंता तैनात किए गए। एक गोंडा में तो दूसरे फैजाबाद में बैठते हैं। अधीक्षण अभियंताओं की संख्या आधा दर्जन तो अधिशासी अभियंता एक दर्जन से अधिक लगाए गए।
- इस तरह नहर को पूरी क्षमता के साथ चलाने के लिए 2018 में पहले किसानों से बातचीत के जरिए विवाद दूर कर गैप को भरने के लिए योगी सरकार ने मुहिम चलाई। जमीन क्रय कर गैप भरने के लिए धन की पर्याप्त व्यवस्था की गई। दिसंबर 2019 में परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य दिया गया था।
- 1978 में इसे 10 साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा था
- 1978 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव ने यूपी के बाढ़ प्रभावित 9 जिलों को लेकर एक प्लान बनाया। इसमें बाढ़ के समय बर्बाद होने वाले जल को संचित कर उसे खेतों की सिंचाई के उपयोग में लाने के लिए सरयू नहर परियोजना की शुरुआत की थी। 10 साल में ही इसे पूरा किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
- यूपी की सत्ता कांग्रेस के हाथ से खिसकी तो सपा और बसपा के हाथों में रही। नतीजतन, प्राथमिकताएं बदलीं तो यह परियोजना भी ठंडे बस्ते में चली गई। 2017 में किसानों के हित में जब इस परियोजना को मूर्त रूप देते हुए नहर का निर्माण कार्य जल्द पूर्ण करने की बात केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से उठी तो क्षेत्र के किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई थी।
Kashi Vishwanath Corridor...विकास के एक नये युग की शुरुआत, पीएम मोदी ने किया खोई हुई परंपरा को बहाल
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