सार

दक्षिण अफ्रीका की ऑब्‍जर्वेटरी की ओर से इस खगोलीय घटना की पुष्‍टि भी की गई है। ऑब्‍जर्वेटरी की ओर से किए गए ट्वीट में बताया गया है कि यह विनाशकारी उल्‍कापिंडों में से एक है। इसमें एक वीडियो भी पोस्‍ट की गई है।

गोरखपुर (Uttar Pradesh) ।  दुनिया के सामने एक नई और बड़ी मुसीबत टल गई है। बगैर किसी आहट के पृथ्‍वी के काफी करीब से उल्‍कापिंड गुजर गया। खबर है कि भारतीय समयानुसार 3 बजकर 26 मिनट पर यह उल्‍कापिंड गुजरा और इससे पृथ्‍वी के किसी हिस्‍से को कोई नुकसान नहीं हुआ। दक्षिण अफ्रीका की ऑब्‍जर्वेटरी की ओर से इस खगोलीय घटना की पुष्‍टि भी की गई है। ऑब्‍जर्वेटरी की ओर से किए गए ट्वीट में बताया गया है कि यह विनाशकारी उल्‍कापिंडों में से एक है। इसमें एक वीडियो भी पोस्‍ट की गई है। वहीं, खगोलशात्री अमरपाल सिंह का कहना है कि यह उल्कापिंड 2079 में एक बार धरती के नजदीक से गुजरेगा, तब ये धरती के लिए और खतरनाक हो सकता है।

दिन में 3.26 मिनट पर गुजरा
इस एस्टेरॉयड को 52768 (1998 OR 2) नाम दिया गया। इस एस्टेरॉयड को नासा ने सबसे पहले 1998 में देखा था। जिस समय यह एस्टेरॉयड धरती के बगल से गुजरा, उस समय भारत में दिन के 3.26 मिनट हो रहे थे। इसका व्यास करीब 4 किलोमीटर का था। इसकी गति करीब 31,319 किलोमीटर प्रतिघंटा थी। यानी करीब 8.72 किलोमीटर प्रति सेंकड. ये एक सामान्य रॉकेट की गति से करीब तीन गुना ज्यादा है।

...तो बर्बाद हो जाता कई देश 
गोरखपुर नक्षत्रशाला में वरिष्ठ खगोलशास्त्री अमरपाल सिंह का कहना है कि यह उल्कापिंड धरती के सबसे ऊंचे पहाड़ माउंट एवरेस्ट से भी कई गुना बड़ा है। यह अगर धरती के किसी हिस्से में टकराता तो बड़ी सुनामी ला सकता था या फिर कई देश बर्बाद कर सकता था। बता दें कि साल 2013 में लगभग 20 मीटर लंबा एक उल्कापिंड वायुमंडल में टकराया था। एक 40 मीटर लंबा उल्का पिंड 1908 में साइबेरिया के वायुमंडल में टकरा कर जल गया था।

2079 में धरती के और करीब से गुजरेगा
खगोलविदों के मुताबिक ऐसे एस्टेरॉयड का हर 100 साल में धरती से टकराने की 50,000 संभावनाएं होती हैं। लेकिन, किसी न किसी तरीके से ये पृथ्वी के किनारे से निकल जाते हैं। खगोलशात्री अमरपाल सिंह का कहना है कि यह उल्कापिंड 2079 में एक बार धरती के नजदीक से गुजरेगा, तब ये धरती के लिए और खतरनाक हो सकता है।