सार
वरुण गांधी लगातार भाजपा की राह में कठिनाई खड़ी करते हुए दिखाई पड़ते हैं। हालांकि लोगों के जहन में सवाल है कि आखिर क्यों मेनका और वरुण घटते कद के बाद भी भाजपा के साथ बने हुए हैं। जानकार इसको लेकर कई कारण बताते हैं।
गौरव शुक्ला
लखनऊ: लखीमपुर खीरी कांड हो या किसानों की समस्या, हर बार भाजपा की राह में सांसद वरुण गांधी कठिनाईयां खड़ी कर रहे हैं। जब भी यूपी में भाजपा किसी बड़ी समस्या में फंसी दिखती है तो वरुण पार्टी की परेशानियों को कम करने के बजाए बीते कुछ समय से उसे बढ़ाते ही दिखाई पड़ते हैं। जिसके बाद यह सवाल खड़ा होता है कि हैसियत कम होने और विरोधी होने के बावजूद भी वरुण गांधी और मेनका गांधी भाजपा में क्यों जमे हुए हैं?
बीते कुछ समय से वरुण गांधी ने लगातार भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। हालांकि जब 2004 में जब वह भाजपा में शामिल हुए थे तो उन्होंने कहा था कि हर सही सोच रखने वाले भारतीय को उस पार्टी को मजबूत करना चाहिए जिसने देश को आगे बढ़ाया है। लोगों के जहन में सवाल आ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हो गया है जो उनको भाजपा रास नहीं आ रही है? ज्ञात हो कि वरुण गांधी की मां मेनका गांधी पिछली बार मोदी सरकार में मंत्री भी थीं। हालांकि दोबारा सरकार बनने पर उनका पत्ता कट गया। इसके बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भी मेनका गांधी और वरुण गांधी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद से जहां मेनका बचाव की मुद्रा में हैं तो वहीं वरुण गांधी आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए हैं।
इस कारण से हैं भाजपा के साथ
जब से सोनिया गांधी ने विरासत पर कब्जा किया है तब से मेनका की बस यही तमन्ना है कि वह उनका राजनीतिक पतन देखें। मेनका उस दल में बने रहना चाहती है जो सोनिया को सत्ता से दूर रख सके। इसी के चलते वह 1988 में जनता दल में शामिल हुईं। फिर जब भाजपा उस स्थिति में आ गई कि वह कांग्रेस को चुनौती दे सके तो वह 2004 में भाजपा में शामिल हो गईं।
सोनिया गांधी के बाद अब इंदिरा की विरासत को राहुल और प्रियंका संभाल रही हैं। इनके रहते मेनका कभी भी कांग्रेस में जाने के बारे में सोच भी नहीं सकती हैं। कई बार वरुण के भी कांग्रेस में जाने की चर्चाएं आती रही हैं। हालांकि गांधी बनाम गांधी परिवार के बीच में जो कड़वाहट घुली हुई है उसके बाद मिठास की गुंजाइश फिलहाल दिखाई नहीं पड़ती है।
वरुण गांधी ने हाल ही में कुछ ट्वीट किए हैं जिसमें उनकी नाराजगी को देखा जा सकता है। केवल बैंक और रेलवे का निजीकरण ही 5 लाख कर्मचारियों को ‘जबरन सेवानिवृत्त’ यानि बेरोजगार कर देगा। समाप्त होती हर नौकरी के साथ ही समाप्त हो जाती है लाखों परिवारों की उम्मीदें। सामाजिक स्तर पर आर्थिक असमानता पैदा कर एक ‘लोक कल्याणकारी सरकार’ पूंजीवाद को बढ़ावा कभी नहीं दे सकती।
विजय माल्या: 9000 करोड़ नीरव मोदी: 14000 करोड़ ऋषि अग्रवाल: 23000 करोड़ आज जब कर्ज के बोझ तले दब कर देश में रोज लगभग 14 लोग आत्महत्या कर रहे हैं, तब ऐसे धन पशुओं का जीवन वैभव के चरम पर है। इस महा भ्रष्ट व्यवस्था पर एक ‘मजबूत सरकार’ से ‘मजबूत कार्यवाही’ की अपेक्षा की जाती है।
अपनी पत्नी के जेवर गिरवी रखते वक्त पुरुष का आत्मसम्मान भी गिरवी हो जाता है। किसी भी हिंदुस्तानी का जेवर या मकान गिरवी रखना अंतिम विकल्प होता है। महामारी और मंहगाई की दोहरी मार झेल रहे आम भारतीयों को यह असंवेदनशीलता अंदर तक तोड़ देगी। क्या यही नए भारत के निर्माण की परिकल्पना है?
UP Election Info: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में 403 विधानसभा सीट के लिए पहले चरण का मतदान 10 फरवरी, दूसरा चरण 14 फरवरी, तीसरा चरण 20 फरवरी, चौथा चरण 23 फरवरी, पांचवां चरण 27 फरवरी, छठा चरण 3 मार्च और अंतिम चरण का मतदान 7 मार्च को है। कुल 7 चरणों में होगा यूपी में चुनाव। मतगणना 10 मार्च को होगी।